14 साल बाद इंसाफ: 70 मिनट, 22 धमाके, 56 मौतें... 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में क्‍या हुआ था, पढ़‍िए

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14 साल बाद इंसाफ: 70 मिनट, 22 धमाके, 56 मौतें... 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में क्‍या हुआ था, पढ़‍िए via NavbharatTimes

यश को रोज याद आता है वह दिनयश व्यास उस वक्‍त सिर्फ 10 साल के थे जब 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद के असारवा इलाके में एक अस्पताल का एक वार्ड बम विस्फोट से दहल उठा था। वह भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं कि उनकी जान बच गई, लेकिन एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरता कि वह अपने पिता और बड़े भाई को याद नहीं करते, जिनकी धमाके में मौत हो गई थी।

'जान बचाने के लिए काटना पड़ जाता मेरा पैर'सदर अस्पताल के ट्रॉमा वार्ड के बाहर विस्फोट में घायल होने वालों में प्रदीप परमार भी थे। परमार आज गुजरात सरकार में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री हैं। 2008 में वे असारवा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के कार्यकर्ता थे। परमार ने खून से लथपथ लोगों को देखा था, वहीं कुछ लोग झुलस गये थे और घटना के बाद अस्पताल में शरीर के अंग बिखरे पड़े थे।

असारवा सीट से विधायक परमार ने कहा, 'कई लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। मेरे एक पैर में गंभीर चोट आई। पैर को करीब 90 प्रतिशत नुकसान पहुंचा था और चिकित्सक मेरी जान बचाने के लिए इसे काटने तक की सोच रहे थे। लेकिन सौभाग्य से वे मेरा पैर बचाने में सफल रहें।'

 

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ञ3 सरकार ने ऐक बार लोक कल्याण शुरू किया यहा तो! वो अंग्रेजी हुकूमत भारत के संविधान मे अक्षुण रहा! और यदि वकील चुप तो,माननिय देखते! वेलफेयर हर लोकसेवक पर बिना लाभ हानि,देखे खर्च होना होता! मोदी विज्ञान नही पढे! विभाग यांत्रिक कल्पना सिद्धान्त नियम जानता! नियम अपरिवर्तनीय होते!

2 आप शर्माजी के ऐकPILमैटर RHC,देख सकते पिछले सप्ताह! जज़ को केवल PIL पर स्व प्रेरणा मतलब अपना दिमाग जानकारी लगाने का अधिकार! मेरी निजि राय!! और वेलफेयर फंड जिस विभाग/कर्मचारी से वसूलती सरकार उसी पर खर्च करते लाभ अपना देख रही! 3

हम मानवीय ता मे फाँसी सज़ा अस्विकारते आऐ हैं! ईश्वर वादी हैं जीवन लेना अधिकार ईश्वर का! कनून,तय तरह,जीवन यापन; बाध्य मे होते! सज़ाबाद,क्षणभर न जीया! तो तात्विक भूल,/ सोच! कनून फाँसी!! ली भारत लोकतंत्र परकहे यह वास्तविक नही! मतलब वो मोदीसरकार नही उससे पहलेसे आती गिरावट पर कहेतब 2

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