रात की गोद में शाम पड़ी है, दरिया लिपटा हुआ है पीपल से

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सुर्खियों से आगे : रात की गोद में शाम पड़ी है, दरिया लिपटा हुआ है पीपल से surkhiyonseaage column navneetgurjar DainikBhaskar

कड़ाके की ठंड है। सूरज भी डर रहा है। कभी वह बादलों का घूंघट डाले रहता है, तो कभी कोहरे की चादर ओढ़ कर सोया रहता है। जागता भी है तो लगता है बादलों की बेंच पर बैठकर किसी याददाश्त की तरह गूंजती उदासी के लंबे-लंबे घूंट भर रहा हो। ज्यादा भावुक होता है तो आंसू भी निकल आते हैं। हम लोग उसे मावठा कहते हैं। फसलों के लिए अच्छा भी। ख़राब भी। मतलब फसल गेहूं की हो तो अच्छा और अगर चने की हो तो सूरज के आंसू सीधे किसान की आंखों में दिखाई देने लगते...

हे! ठंड तुम कहां से उपजी हो। तुम्हारी दृष्टि झक सफ़ेद। दैत्यमय भी। देवमय भी। तुम्हारी आंखों में, भोर भी और सांझ भी। तुम्हारी सुगंध, जैसे सांझ की आंधी। तुम्हारे होंठ, जैसे करेले का घूंट। तुम एक हाथ से ख़ुशी बीजती हो और दूसरे हाथ से तबाही।

 

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