मध्य प्रदेश: भिंड-मुरैना के किसानों के लिए डीएपी खाद पाना चुनौती क्यों बन गया है

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मध्य प्रदेश: भिंड-मुरैना के किसानों के लिए डीएपी खाद पाना चुनौती क्यों बन गया है MadhyaPradesh Farmers DAPFertilizer मध्यप्रदेश किसान डीएपीखाद

मुरैना जिले की बामोर तहसील स्थित पहाड़ी गांव निवासी किसान कमल सिंह को सरसों की फसल बोने के लिए दो बोरी डीएपी खाद चाहिए. इसके लिए वह पिछले आठ दिनों से भटक रहे हैं. जब बामोर में खाद नहीं मिला तो वे मुरैना पहुंचे, वहां भी निराशा हाथ लगी तो उन्होंने ग्वालियर का रुख किया. पर इतनी भाग-दौड़ करके भी उन्हें सफलता नहीं मिली.

परेशान सिर्फ कमल सिंह या दर्शन सिंह ही नहीं हैं, ग्वालियर-चंबल अंचल के भिंड, मुरैना और ग्वालियर जिले का लगभग हर किसान डीएपी खाद की अनुपलब्धता से परेशान है. मध्य प्रदेश में सर्वाधिक सरसों उत्पादन भिंड और मुरैना जिलों में ही होता है. अक्टूबर माह में रबी सीजन आते ही सरसों की बुवाई शुरू हो चुकी है, जिसके लिए किसानों को बड़े पैमाने पर डीएपी खाद की जरूरत है. लेकिन सरकारी मंडियों से लेकर, सहकारी समितियों और निजी विक्रेताओं के यहां बार-बार चक्कर काटने के बावजूद भी किसानों को खाद नहीं मिल रही है.

यही परेशानी का सबब बना हुआ है, जिसने किसान को आक्रोशित कर दिया है. नतीजतन, अंचलभर से ऐसी खबरें आम हो गई हैं जहां किसान क़ानून हाथ में ले रहा है. भिंड और मुरैना में किसानों द्वारा सड़कों और हाईवे पर विरोधस्वरूप जाम लगाने की घटनाएं हुईं. मुरैना की कैलारस तहसील के हटीपुरा गांव निवासी रामपाल सिंह सिकरवार ने बताया, ‘मुझे दस से पंद्रह बोरी डीएपी चाहिए. पंद्रह दिन भटकने पर एक भी नहीं मिली. हजारों की कतार में नंबर ही नहीं आ पाता, तब तक दिन निकल जाता. इसलिए ब्लैक में चार बोरी खरीदनी पड़ीं, ताकि फिलहाल काम चल सके क्योंकि खेत बंजर तो छोड़ नहीं सकते. बोवनी में देरी करने पर फसल खराब आएगी.’

हालांकि, ब्लैक में भी हर किसान को खाद उपलब्ध नहीं है. किसानों के मुताबिक, जिनकी अच्छी जान-पहचान होती है, कालाबाजारी केवल उन्हें ही खाद बेचते हैं. वहीं, अगर ब्लैक में खाद मिल भी जाए तो ग्वालियर की तरह पकड़े जाने का भी डर रहता है. किसान ब्लैक में भी खाद लेने से कतरा रहा है क्योंकि उसे डर है कि निश्चित दर से अधिक कीमत चुकाने के बाद भी नकली खाद खपा दी जाएगी.

कैलारस तहसील के नेपरी गांव निवासी ऋषिकेश जाटव कहते हैं, ‘10-12 बोरी डीएपी की जरूरत है. दस दिन से लाइन में लग रहा हूं, कुछ नहीं मिला. तब बाजार में खरीदने गया. 1,200 वाला कट्टा 1,350-1,400 में बेचा जा रहा था. वो भी असली होगा या नकली, कुछ पता नहीं. इसलिए काम चलाने के लिए पड़ोसी से इस वादे पर दो बोरी डीएपी उधार लिया कि मुझे मिलते ही लौटा दूंगा. क्योंकि, खेती तो करनी है. सरकार के इंतजार में रहा तो पूरा सीजन निकल जाएगा.

12 अक्टूबर को खाद की स्थिति पर बैठक करने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो यहां तक कह दिया कि प्रदेश में खाद संकट ही नहीं है, जबकि उसी दिन मुरैना के किसान अपने सांसद और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे, भिंड में सरकारी गोदाम से खाद लूटी गई थी और ग्वालियर में पुलिस के पहरे में खाद बांटी गई थी.

 

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