उत्तराखंड में एक के बाद एक गाँव क्यों हो रहे हैं ख़ाली - BBC News हिंदी

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उत्तराखंड में एक के बाद एक गाँव क्यों हो रहे हैं ख़ाली

निर्मला सुंद्रियाल जलवायु परिवर्तन के सामाजिक असर पर चिंता जताती हैं

जीबी पंत कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ तेज़ प्रताप कहते हैं. "अब हम उस दौर में पहुँच गए हैं, जहां खेती पर जलवायु परिवर्तन का असर बिलकुल स्पष्ट दिखाई दे रहा है. पहले ये कहा जाता था कि ग्लोबल वॉर्मिंग होगी तो जो फ़सलें जहाँ उगती हैं, उससे अधिक ऊंचाई पर शिफ़्ट हो जाएंगी. मौसम हमें बता रहा है कि तापमान बढ़ने के साथ बारिश और बर्फ़बारी का पैटर्न भी बदल गया है."

स्टेट ऑफ़ इनवायरमेंट रिपोर्ट ऑफ़ उत्तराखंड के मुताबिक भी जलवायु परिवर्तन के चलते कृषि उत्पादन प्रभावित हुआ है. तापमान बढ़ने, अनियमित बारिश, मानसून में देरी, सिंचाई के स्रोतों के सूखने जैसी वजहों से राज्य में कृषि उत्पादन में गिरावट आ रही है.वन्यजीवों के लिए कार्य कर रही संस्था डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया में वाइल्ड लाइफ एंड हैबिटेट प्रोग्राम में डायरेक्टर डॉ. दीपांकर घोष कहते हैं, "सीधे तौर पर हम जलवायु परिवर्तन और मानव-वन्यजीव संघर्ष को जोड़ नहीं सकते.

वे कहते हैं, "भालू पहले 4-5 महीने शीत निद्रा में रहते थे. लेकिन बर्फ़बारी कम होने से शीत निद्रा का उनका समय घट रहा है. लद्दाख के द्रास और जांस्कर घाटी में हमने पाया कि भालू एक महीना भी शीतनिद्रा में नहीं जा रहा."लेकिन पौड़ी समेत मध्य हिमालयी क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं को वे सामाजिक समस्या मानते हैं.

 

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नागरिक की मानसिक शांति जीवन जीने मे सबसे मदद गार! इसके अलावा वो क्या खाता पीता सूंघता! आम नागरिक तक साफ पानी नही पीता शुद्ध भोजन नही करता वायु भी अशुद्ध! सो रोगी रहती देह और रोग खाली जेब नेज़े सी जिस पर सरकार क्या विपक्ष क्या समाज सेवी भी चुप ट्विटर भी रखवाल😉

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