उनसे संबंधित मामलों पर लगाई गुहार सुनने वाला कोई नहीं है। इस तरह लंबे समय से लोगों के कई मूल अधिकार भी बाधित हो रहे हैं। एक सक्षम और लोक कल्याणकारी सरकार का पहला कर्तव्य है कि वह नागरिकों की शिकायतों के निपटारे का समुचित प्रबंध करे। मगर जब निपटारे की जगहों पर मामलों की सुनवाई करने वाले लोग ही नहीं होंगे, तो निपटारे होंगे कैसे। विचित्र है कि इस पर सर्वोच्च न्यायालय को फटकार लगानी पड़ी है।
पहले भी अदालत ने कहा था कि सरकार जल्दी न्यायाधिकरणों में नियुक्तियां करे, मगर उस पर अमल नहीं हो पाया। उससे नाराज होकर सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को फटकार लगाई है कि अगर वह न्यायाधिकरण नहीं चाहती तो कानून को ही रद्द क्यों नहीं कर देती। इस पर अतिरिक्त महाधिवक्ता ने अदालत को आश्वस्त किया कि सरकार नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है, मगर बंबई उच्च न्यायालय के कुछ प्रावधानों को निरस्त कर देने के बाद अड़चनें आ रही हैं। दरअसल, जिला एवं राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में अध्यक्ष और...
उपभोक्ता को जागरूक बनाने का प्रयास इसलिए किया गया था कि उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करने वाली कंपनियों की मनमानी पर लगाम कसी जा सके। इसी उद्देश्य से उपभोक्ता कानून बनाए गए थे। बरसों विज्ञापन और जागरूकता कार्यक्रमों के जरिए नारा चलाया जाता रहा कि जागो ग्राहक जागो। इस कानून का असर भी हुआ। वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता के मामले में लापरवाही या धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने में मदद मिली थी। अनेक मामलों में धोखाधड़ी करने वाली कंपनियों के खिलाफ भारी जुर्माना लगाया गया था। इससे काफी हद तक...
हालांकि यह पहला मामला नहीं है, जब सरकार ने नियुक्तियों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को टालने का प्रयास किया है। इससे पहले उच्चतम और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्तियों को लेकर भी उसका रवैया टालमटोल का ही देखा गया। सर्वोच्च न्यायालय ने जिन नामों की सूची बना कर भेजी थी, उनमें से उसने अपनी मर्जी के कुछ नामों को छांट कर बाकी जगहों के लिए नाम स्वीकृत ही नहीं किए। उसमें भी कनिष्ठता और वरिष्ठता का ध्यान नहीं रखा गया। उस पर भी सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को कड़ी फटकार लगाई...
दरअसल, न्याय व्यवस्था हमारे लोकतंत्र का तीसरा सबसे मजबूत पाया है, उसे कमजोर रख कर लोकतंत्र को स्वस्थ नहीं बनाए रखा जा सकता। बिना जजों और कर्मचारियों के न्यायपालिका का कामकाज सुचारु ढंग से चल ही नहीं सकता। पहले ही अदालतों पर मुकदमों का भारी बोझ है, उससे पार पाने के लिए नए पद सृजित करने की सिफारिश की जाती रही है। तिस पर अगर स्वीकृत पद ही लंबे समय तक खाली रहेंगे, तो वहां लोगों को इंसाफ मिल पाने की दर का अंदाजा लगाया जा सकता है। उपभोक्ता कानून को प्रभावी बनाने के लिए उससे संबंधित न्यायाधिकरण में...
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