हिंदी सिनेमा के सबसे मशहूर लेखकों में शुमार रहे सलीम-जावेद ने शुरू में तमाम ओरीजनल आइडियाज पर काम किया। खूब सारी कहानियां लिखीं जिनके तार किन्हीं दूसरी फिल्मों से नहीं टकराते थे। लेकिन, बाद में उन्हें लगा कि शायद हिंदी सिनेमा को ओरीजनल कहानी पच नहीं पाती है। तो उन्होंने ऐसी कहानियों पर फिल्में लिखनी शुरू कीं जिनके बीज तो पहले से ही सिनेमा में बोए जा चुके थे, लेकिन जिनके समीकरणों का नए जमाने को जमने वाला विस्तार कम लेखक ही सोच पाए। राजेश खन्ना से लेकर...
बच्चन से होते हुए सलीम-जावेद की जो कहानी अनिल कपूर तक आई, उसमें खासियत अनिल कपूर की ये रही कि उन्होंने अमिताभ बच्चन के लिए लिखे गए एक रोल को परदे पर यूं करके दिखा दिया कि कहीं से लगा ही नहीं कि ये रोल अनिल कपूर के लिए नहीं लिखा गया था। मई 1987 को रिलीज हुई। मुंबई के मराठा थिएटर में इसे देखने के लिए लोगों का रेला उमड़ पड़ा था और मुंबई के फिल्म समीक्षक जब कोलाबा के स्ट्रैंड थिएटर में इसका फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखकर निकले तो फिल्म के हिट होने का एलान हो चुका...
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