गौतम बुद्ध के पास जीवन की संभवतः सबसे वैज्ञानिक दृष्टि है. वह जीवन के वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक और प्रबल समर्थक हैं. बुद्ध कल और और परसों से अधिक आज पर ध्यान देने की बात करते हैं. आज से भी अधिक वह 'अभी' में रहने के लिए कहते हैं. कैसे कोई अभी में रहे. क्योंकि हम तो हमेशा ही अतीत और भविष्य में भटकते रहते हैं. हमारी पूरी ऊर्जा और चेतना इन दोनोंं के आसपास भटकती रहती है.
जिनके पास हजारों मील के सफर के लिए चंद हजार रुपए भी नहीं हैं, वह सब कुछ दांव पर लगा कर, संकट से आंखें चार कर रहे हैं. गुड़गांव से साइकिल पर अपने पिता को लेकर बिहार पहुंचने वाली ज्योति व्यवस्था से तो परेशान है लेकिन वह उसकी ओर बहुत आशा भरी नजर से देखती नहीं. वह अपने इरादे, मानसिक शक्ति से शरीर में बिना किसी भारी भरकम पोषण के इतनी ऊर्जा भर लेती है कि हजार से ऊपर किलोमीटर और भीषण गर्मी को पार करते हुए अपनी साइकिल बिहार तक पहुंचा देती है. ज्योति अकेली नहीं हैं.
यह वर्ग मानसिक रूप से मध्यमवर्गीय समाज से कहीं अधिक मजबूत नजर आ रहा है. कहीं ठोस रूप में मुश्किलों से लोहा ले रहा है. एक प्रकार से देखा जाए तो यह लोग बुद्ध की उस शिक्षा के बहुत नजदीक हैं, जिसमें वह सारी शक्ति को आज में जीने में लगाना चाहते हैं. इनके पास कल की कोई ठोस तस्वीर नहीं है, लेकिन वह निराशा से अधिक जीवन की आस्था के नजदीक हैं. दूसरी ओर मध्यमवर्गीय समाज जिसके पास अभी चीजों का 'स्टॉक' बाकी है, वह मन से कुछ कमजोर दिख रहा है. हर छोटी-छोटी बात में निराशा के नजदीक जा रहा है.
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DayashankarMi माननीय सोनिया गांधी जी आपके द्वारा बनाई हुई राजस्थान में सरकार बेरोजगारों के साथ अन्याय कर रही है पंचायती राज एलडीसी भर्ती 2013 को आज तक भी पूरा नहीं किया है आपसे निवेदन है कि ashokgehlot51 जी से बोलकर भर्ती पूरी करवाये priyankagandhi RahulGandhi
DayashankarMi कफन चोरों के नए कारनामे पर खामोश क्यों मीडिया
DayashankarMi देश को संवारने सजने दो सभी कुछ ब्याज सहित वापस मिलेगा। लोग रहेंगे तो देश रहेगा ,तो हम रहेंगे, काम धंधे चलेंगे, तो सभी कुछ मिलेगा।
DayashankarMi कहने और महसूस करने में बहुत अंतर है. भविष्य और नौकरी की अनिश्चितता, आमदनी में कटौती, परिवार का भविष्य, किश्तों का भुगतान आदि ऐसी समस्याएं हैं जो स्वाभाविक रूप से जीवन का सुख छीन लेती हैं सिवाय उनका जो धनी हैं, सरकारी सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं, वातानुकूलित कमरों में बैठे हैं.
DayashankarMi कहते हैं जीवन में जिसने आशा छोड़ दी समझो जीना छोड़ दिया।हम जब बचपने में चलना शुरू करते हैं तो न जाने कितनी दफा गिरते हैं।तुर्रा ये कि जब चलना सीख भी जाते हैं तो भी गिरते हैं।मतलब गिरना-उठना जीवन के अभिन्न अंग हैं।आप चाहे जिस भी कारण से दु:खी हों,मन में उम्मीद रखें,सब ठीक हो जाएगा
DayashankarMi This is really inspiring..we should not lose hope.
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