दो महीने से ज़्यादा के लॉकडाउन के बाद अब दुनिया के तमाम देशों में इसे धीरे धीरे हटाया जा रहा है.
आम तौर पर होता यही है कि बुरा वक़्त बिताना मुश्किल होता है. आप ट्रेन या फ्लाइट का इंतज़ार करते हों, तो समय बिताते नहीं बीतता. मगर, किसी प्रिय के साथ हों या किसी पसंदीदा जगह घूमने जाते हों, तो समय मानो फुर्र से उड़ जाता है.असल में हम समय के गुज़रने का आकलन दो तरह से करते हैं. पहला तो ये कि अभी समय कितनी जल्दी बीत रहा है? और, पिछला हफ़्ता या पिछला दशक कैसे बीता था?
अगर हम रोज़ एक जैसा ही तजुर्बा करते हैं, तो हमारे ज़हन में नई यादों का पिटारा नहीं बनता. असल में हम यादों के सहारे ही ये तय करते हैं कि कितना वक़्त गुज़र गया. अगर आप किसी नई जगह पर घूमने जाते हैं, तो समय तेज़ी से बीतता है. मगर आप नई यादों के साथ लौटते हैं. नई यादों के साथ ये गुज़रा हुआ समय लंबा लगता है.
लॉकडाउन के दौरान भले ही आपके दिन व्यस्तता भरे रहे हों. घर के तमाम काम करने पड़े हों. मगर, नई यादें सहेजने के लिहाज़ से इनमें कुछ भी नया नहीं था.सामान्य दिनों हम भविष्य के ख़्वाब सजाते हैं. मगर, लॉकडाउन के दौरान हम आज में जीने को मजबूर थे. भविष्य में झांकने के लिए हमारे पास आज का कोई ख़ास तजुर्बा नहीं था. और हमें ये भी नहीं पता था कि आगे हालात कैसे होगे. नतीजा ये कि न तो नई यादें इकट्ठा हुईं. न ही हम आगे की सोच पाए.
Sahi uttar zaanna hai to corona marizo , health workers , security personnel, housewives se poochho
Nahi
समय नहीं बीत रहा है बिना कामकाज के लिए लेकिन क्या करे
आपके लेख की शैली नकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकती है, किंतु यह सत्य भी है.......
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