संकट की घड़ी में दिल्ली का इम्तिहान

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महामारी की दूसरी लहर ने दिल्ली की ध्वस्त व्यवस्था की असलियत सामने रख दी। जब तक व्यवस्था चल रही होती है तब तक उसका श्रेय लेना आसान होता है। लेकिन असल परीक्षा संकट के समय होती है। महामारी वैसा ही संकट है जिसके लिए बाजार पर आधारित व्यवस्था और सरकार कभी तैयार नहीं होती है।

मुकेश भारद्वाज आपदा और महामारी वह समय होता है जब सरकारों की असली परीक्षा होती है। जब तक सब कुछ ठीक चलता रहता है तो उस स्वत: सही का श्रेय हर सरकार अपने नाम करती है। लेकिन संकट के समय अपनी जिम्मेदारियों की अर्थी दूसरे के कंधे पर रख देने वाले नेताओं से क्या उम्मीद की जा सकती है। जब देश की राजधानी दिल्ली अंतिम संस्कार स्थलों पर शवों की कतार को लेकर सवालों के घेरे में थी उसी वक्त दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल केंद्र के साथ बैठक के खास हिस्से का प्रसारण कर अपनी कमीज सबसे सफेद साबित करने की कोशिश...

उम्र- 55 साल। ढाई दशक से मरीजों की जान बचा रहे थे लेकिन कोरोना से पीड़ित होने के बाद इन्हें अस्पताल में जगह नहीं मिली। देश की राजधानी दिल्ली में जब चिकित्सक अस्पताल में इलाज मिले बिना मर रहे हैं तो आम लोगों की हालत अंतिम संस्कार स्थल पर रखे शवों की लंबी कतार बता रही है। आजादी के बाद हमने ऐसा मंजर पहली बार देखा है जब श्मशान गृह पूरी रात धधक रहे हैं, पार्क में भी शवदाह के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। देश की राजधानी में महामारी के इस भयावह दौर में अचानक एक वीडियो फुटेज सामने आ जाता है जिसमें दिल्ली के...

 

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