विचार से आगे का सफर

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कठोपनिषद का दूसरा नाम ‘नचिकेतोपाख्यान’ है क्योंकि इसमें नचिकेता की कहानी है जो आत्मज्ञान की खोज करता है। ज्ञान के दार्शनिक विमर्श में जिस एक बात पर खास जोर दिया गया है, वह है आत्मबोध। यह बोध दरअसल आत्मशक्ति का बोध है।

ओशो इस सिलसिले में कहते हैं कि मैं प्रत्येक मनुष्य के भीतर अनंत शक्तियों को प्रसुप्त अवस्था में देखता हूं। इन शक्तियों में से अधिक शक्तियां सोई ही रह जाती हैं और हमारे जीवन के सोने की अंतिम रात्रि आ जाती है। हम इन शक्तियों और संभावनाओं को जगा ही नहीं पाते। इस तरह हम में से ज्यादातर लोग आधे ही जीते हैं या कहें कि उससे से भी कम।

विलियम जेम्स ने आधुनिक मनुष्य की त्रासदी को लेकर कहा है कि उसकी अग्नि बुझी-बुझी जलती है और इसलिए वह स्वयं की आत्मा के ही समक्ष भी अत्यंत हीनता में जीता है। इस हीनता से ऊपर उठना बहुत जरूरी है। अपने ही हाथों दीन-हीन बने रहने से बड़ा कोई पाप नहीं। विधायक सक्रियता और सृजनात्मकता से ही सोई शक्तियां जाग्रत होती हैं और व्यक्ति अधिक से अधिक जीवित बनता है। जो व्यक्ति अपनी पूर्ण संभावित शक्तियों को सक्रिय कर लेता है, वही पूरे जीवन का अनुभव कर पाता है और वही आत्मा का भी अनुभव करता है। क्योंकि, स्वयं की समस्त संभावनाओं के वास्तविक बन जाने पर जो अनुभूति होती है, वही आत्मा है।

 

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