रेडियोधर्मी विकिरण से बचने में आयोडीन कितना मददगार? | DW | 12.03.2022

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जब एटमी ऊर्जा संयंत्र में कोई दुर्घटना होती है तो उस स्थिति में रेडियोधर्मी आयोडीन, हवा में मिलने वाले सबसे पहले पदार्थों में से एक होती है.अगर वो रेडियोधर्मी आयोडीन शरीर में चला जाए तो वो थाइरॉयड कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाकर कैंसर पैदा कर सकता है.

विकिरण का कोई उपचार शायद ही होगा. ये बात निर्णायक हो जाती है कि विकिरण से व्यक्ति सिर्फ"संक्रमित” हुआ है या वो विकिरण उसके शरीर में"समाविष्ट” हो चुका है.

संक्रमण की स्थिति में, रेडियोएक्टिव कचरा शरीर की बाहरी सतह पर ही जमा हो जाता है. यह बात हास्यास्पद लग सकती है लेकिन वैसे मामलों में लोगों को पहला काम ये करना चाहिए कि रेडियोएक्टिव कचरे को सामान्य साबुन और पानी से अच्छी तरह धो लें. "रेडियोएक्टिव समावेश” कहीं ज्यादा खतरनाक है. एकबारगी रेडियोएक्टिव पदार्थ शरीर में दाखिल हो जाए तो उसे दोबारा बाहर निकाल पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है.रेडियोधर्मिता की माप मिलीसीवर्ट में की जाती है. लघु अवधि में 250 मिलीसीवर्ट वाला विकरण, विकिरण बीमारी पैदा करने के लिए काफी है. कहने का आशय ये है कि जर्मनी में विकिरण सुरक्षा का संघीय कार्यालय , पर्यावरण में एक साल के दौरान औसतन 2.1 मिलीसीवर्ट की मात्रा दर्ज करता है.

4000 मिलीसीवर्ट की मात्रा में गंभीर विकिरण सिकनेस तेजी से शुरू हो जाती है. मृत्यु का खतरा भी बढ़ जाता है. 6 सीवर्ट पर मृत्यु का खतरा 100 प्रतिशत हो जाता है. यानी बचने का कोई मौका नहीं. मौत कमोबेश एक झटके में आ जाती है.स्टॉकहोम अंतरराष्ट्रीय शांति शोध संस्थान यानी सीपरी हर साल दुनिया भर में हथियारों के बारे में रिपोर्ट तैयार करती है. सीपरी के मुताबिक 2021 की शुरुआत में दुनिया भर में कुल 13,080 परमाणु हथियार मौजूद थे.

 

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