क्या बुरे ख्याल आते ही आप डरने लगते हैं या फिर ऐसा लगता है कि जिंदगी में नकारात्मकता छा रही है। इससे निजात पाने और सकारात्मकता बढ़ाने के लिए ऑनलाइन मोटिवेशन की शरण में जाते हैं।
साइकोलॉजी टुडे की एक नई रिपोर्ट ऐसे ही सवालों पर रौशनी डाल रही है। यह रिपोर्ट कहती है कि जीवन में कई बार निगेटिव सोच भी बड़े काम की होती है। जो लोग हमेशा ख्याली पुलाव पकाते हुए सिर्फ सकारात्मकता में डूबे रहते हैं, सबकुछ को ठीक मान रहे होते हैं, वे करियर और जिंदगी में पीछे छूट जाते हैं। दूसरी ओर, अगर कोई जरूरत के मुताबिक निगेटिव सोच को आने दे और उस पर गंभीरता से विचार करे यानी क्रिटिकल थिंकिंग करे, अपने दिल और दिमाग पर जोर डालकर बार-बार सोचे, अच्छे-बुरे परिणामों की चिंता करे तो उसकी प्लानिंग और तैयारी खुद-ब-खुद बेहतर हो जाती है। जिसका सीधा असर जिंदगी और करियर पर दिखता है।मान लीजिए कि A और B दो दोस्त हैं। A मुश्किलों में भी खुश रहने और पॉजिटिव दिखने की कोशिश करता है। निगेटिव ख्यालों से दूर भागता है। मुश्किल परिस्थिति में भी ‘ऑल इज वेल’ का मंत्र दोहराता रहता...
नतीजा ये होता है कि पीरियॉडिकल और ऑकेजनल निगेटिविटी उसे ज्यादा बेहतर काम करने के लिए प्रेरित करती है। हर वक्त सिर्फ पॉजिटिविटी में ही डूबे रहने वाला व्यक्ति कई बार यह करने में चूक जाता है। एमिली विलरोथ की रिसर्च का सार तो यही है कि ‘ऑल इज वेल’ का मंत्र जपने से बेहतर है कि मुश्किलों को स्वीकार कर उसे ठीक करने की कोशिश की जाए। ताकि ‘ऑल इज वेल’ सिर्फ सोच में न रहे, बल्कि धरातल पर भी दिखे।
निगेटिव और पॉजिटिव थिंकिंग का यह सर्कल जिंदगी में काम को बेहतर तरीके से अंजाम देने में मददगार है। यह कॉन्फिडेंस को भी बूस्ट करता है।सही दिशा और सही समय पर की गई निगेटिव थिंकिंग क्यों जरूरी है, इसका जवाब ह्यूमन बॉडी फंक्शन में छिपा है।
Positive Vs Negative Thinking Cognitive Ability Disability Personality Traits Optimism Pessimism Stress Management
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