राजस्थान: खनन क्षेत्र के लाखों मज़दूर भुगत रहे हैं लॉकडाउन का ख़ामियाजा

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राजस्थान: खनन क्षेत्र के लाखों मज़दूर भुगत रहे हैं लॉकडाउन का ख़ामियाजा Rajasthan MiningWorkers Lockdown AshokGehlot राजस्थान खननमजदूर लॉकडाउन अशोकगहलोत

कोरोना संक्रमण के चलते लगे लॉकडाउन का असर राजस्थान के लगभग 30 लाख खान मजदूरों पर सबसे ज्यादा पड़ा है. 25 मार्च से हुए देशव्यापी लॉकडाउन के बाद खानें बंद हो गईं और लाखों मजदूर एक झटके में बेरोजगार हो गए.

राज्य सरकार ने 20 अप्रैल से खनन कार्य शुरू करने की अनुमति दी है, लेकिन खानों में मजदूर नहीं लौटे हैं क्योंकि अधिकतर मजदूर अपने घरों-गांवों को लौट आए हैं. उनका कहना है कि अगर सरकार लॉकडाउन में खान मजदूरों की मदद करती तो लाखों लोगों को फायदा होता और मजदूर काम की जगह छोड़कर भी नहीं जाते.वे आगे बताते हैं, ‘मेरे गांव से बालेसर करीब 30 किमी दूर है. सरकार ने खान शुरू की हैं, लेकिन उनमें मजदूर नाम के हैं. जिन मजदूरों के पास जाने के लिए खुद का साधन है, वे ही खानों में पहुंच पा रहे हैं. सरकारी या प्राइवेट बस और अन्य साधनों को अभी अनुमति नहीं है इसीलिए मैं काम पर नहीं जा पा रहा हूं.

राणा बताते हैं, ‘हम लगातार खान मजदूर कल्याण बोर्ड बनाने की मांग सरकार से कर रहे हैं. खनन प्रभावित क्षेत्रों और लोगों के विकास के लिए 2016 में बने ड्रिस्टिक्ट मिनिरल फाउंडेशन ट्रस्ट में बिना उपयोग के पड़े सैंकड़ों करोड़ रुपये मजदूरों के भले के लिए काम में आने चाहिए. इस फंड के उपयोग की सरकार और खान विभाग के पास कोई योजना ही नहीं है. खान मजदूरों के हक़ का पैसा उन पर ही खर्च होना चाहिए.

बीते तीन सालों में 1420 करोड़ रुपये का बजट आवंटन कर 8,550 कार्यों की अनुमति दी गई थी, लेकिन धीमी सरकारी कार्यप्रणाली के चलते सिर्फ 3,325 कार्य ही पूरे हो पाए हैं, 5,225 विकास कार्य अभी अधूरे हैं. आवंटित 1,420 करोड़ रुपये में से 3,325 कार्यों पर 676.34 करोड़ रुपये ही खर्च किए जा सके हैं.लगातार खनन कार्य के चलते खान मजदूरों में सिलिकोसिस बीमारी आम है. ये लाइलाज बीमारी है और इससे मरीज के फेफड़े खराब हो जाते हैं. हालत ज्यादा खराब होने पर मरीजों को ऑक्सीजन की भी जरूरत होती है.

वहीं, कोरोना वायरस की वजह से मजदूरों के नए रजिस्ट्रेशन और सर्टिफिकेट नहीं बन पा रहे हैं. सैंकड़ों मजदूर मुआवज़े का इंतजार कर रहे हैं.के मुताबिक 2016 से 22 मई तक प्रदेश में 86,288 खान श्रमिकों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया है. इसमें से सिर्फ 15,803 श्रमिकों को ही सिलिकोसिस सर्टिफेकेट दिए गए हैं. मजदूरों के लिए डीएमएफटी फंड को इस्तेमाल करने के सवाल पर गोयल कहते हैं कि डीएमएफटी का नियमों के अनुसार जिला स्तर पर उपयोग होता है. कोविड-19 से जंग के लिए 30 फीसदी उपयोग की अनुमति दी थी. बाकी जो सभी मजदूरों के लिए योजनाएं हैं, वे खान मजदूरों पर भी लागू होती हैं. अलग से कोई योजना इनके लिए नहीं बनी है. खान विभाग ने अलग-अलग जिलों के लिए 600 करोड़ रुपये डीएमएफटी में से जारी किए हैं.

 

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