भारत में नोवेल कोरोना वायरस का पहला केस चीन के वुहान से केरल लौटे एक मेडिकल छात्र में रिपोर्ट हुआ. इसने एक दिन के बुखार और गले में खराश से अलग और कोई लक्षण नहीं दिखाया. फिर भी उसने एक सरकारी अस्पताल में आइसोलेशन में 25 दिन बिताए. केरल के पठानमथिट्टा की एक अन्य 62 वर्षीय महिला ने आखिरकार 22 अप्रैल को निगेटिव टेस्ट दिखाया. इससे पहले हफ्तों तक बिना किसी लक्षण वाली इस महिला ने 42 दिन अस्पताल में बिताए. इस दौरान उसके 22 टेस्ट हुए.
भारत में महामारी प्रबंधन की खास बातों में अस्पतालों और अन्य देखभाल सुविधाओं में अधिक मरीजों का भर्ती किया जाना भी शामिल है. सरकारी नीतियों के जोड़ के मुताबिक पॉजिटिव टेस्ट देने वाले सभी लोगों को अस्पताल या अन्य केयर फेसिलिटी में भर्ती कराया जाना जरूरी है. साथ ही डिस्चार्ज के लिए RT-PCR टेस्ट का नतीजा निगेटिव आवश्यक है. भारत में कम से कम 17,000 लोग अस्पतालों और आइसोलेशन वॉर्ड में 10 या ज्यादा दिन से भर्ती हैं.लेकिन अब इस स्थिति में सरकार की नीतियों की वजह से बदलाव होगा.
सरकारी नीतियों की वजह से भारत में Covid-19 मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने की दर ऊंची है. 27 अप्रैल तक सभी पॉजिटिव टेस्ट होने वाले लोग, चाहे वो बिना लक्षण वाले हों, उन्हें मेडिकल फेसिलिटी में आइसोलेट किया जा रहा था. हालांकि जिन्हें इंटेंसिव केयर की जरूरत थी, उनकी हिस्सेदारी कम ही थी. सरकार पहले कह चुकी है कि 85% ने सिर्फ हल्के या मध्यम लक्षण ही दिखाए थे.अब तक, अस्पताल या केयर फेसिलिटी में मौजूदा स्थिति में जो भर्ती हैं, उनमें 25-33 % ऐसे हैं जो 10 से ज्यादा दिन से भर्ती हैं.
लेकिन ये आंकड़े राज्यों में अलग-अलग होते हैं, महाराष्ट्र पर संस्थागत लोगों का सबसे ज्यादा बोझ है, खासतौर पर वो जिन्हें 10 दिन से ज्यादा भर्ती हुए हो गए हैं. वहीं केरल और बिहार में ऐसे लोगों की संख्या कम है जो 10 से ज्यादा दिन के लिए संस्थागत भर्ती हुए यानि अस्पताल या केयर फेसिलिटी में. अगर ये नियम मई के पहले हफ्ते में लागू किया होता तो भारत में उस वक्त तक 9,000 ज्यादा लोग ‘रिकवर्ड’ घोषित हो जाते.
क्या इसके मायने ये हैं कि भारत में बीमारी का वक्र तेजी से बदल रहा है? बहुत ज्यादा नहीं, लेकिन आंकड़े परिभाषा से जुड़े बदलावों की जरूर ट्रिक करेंगे, जो उन्हें रेखांकित करते हैं.
सरकार एवं मजदूरों के बीच में कुछ दूरी पर है। यह समझने की जरूरत है। क्योंकि बापिस आ रहे मजदूरों में कोरोना वायरस पाजिटव संख्या अधिक है। यह चिन्तन करने लायक है।
Itna confidence hai ti unhe hospital kyon le jarahe ho bolo ye to mild case apne aap thil ho jayega , case badh rahe hai to koi rule lagao
महान इंडिया...... बिना टेस्ट किय डिस्चार्ज
इसे कहते है हाथ खड़े करना l जम्मेदारी से पल्ला झाड़ना l और लोगों कि मरने के लिये छोड़ देना l लाँक डाउन को ग़लत तरीक़े से लगाया अब महामारी फैल गया तो लाँक डाउन घटाया l जैसे नोटबंदी फ़ेल थी वैसे ही है
हम तो चाटुकारिता देखने के लिये भी तैयार बैठे हैं
Bina theek hue hi discharge kar do. Bina recovery k hi recovered k count badh jaenge.
हर हर महादेव
Dinesh7737 IndiaFightsCoronavirus
इस पॉलिसी के बाद अगर देश में केस अचानक से बढ़ते है (ऐसा होने की संभावना ज्यादा है) तो क्या फैसले लेने से संबंधित लोग इसकी जिम्मेदारी लेंगे ?
ये उल्टा सुल्टा क्यू लिखते हो ?
अर्थव्यवस्था खराब होती है तो gdp का बेस ईयर बदला जाता है और केस बढ़ रहे हैं तो मापदंड ही बदल दिए जा रहे। ऐसे लड़ रहा भारत।
ऐ मजदूरों उसी रास्ते से गांव जाना जिन रास्ते मुसलमान मिलें यकीन मानो वो रोज़े से होंगे, लेकिन तुम्हे भूखा ना जाने देंगे
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