इंग्लिश चैनल नाव दुर्घटना में मौत का शिकार बनी सात साल की बच्ची सारा.धूप में एक चौराहे पर बेपरवाही से चहलकदमी करते उस तस्कर को इस बात का बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था कि उसका पीछा किया जा रहा है.वह एक साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति था जो दोपहर में एक टेंट वाले प्रवासी स्वागत केंद्र से पास के ट्राम स्टेशन की ओर टहल रहा था.जब हम लक्ज़मबर्ग की कैपिटल के बीच चौराहे उसके पास पहुंचे, मैंने पूछा, "हम जानते हैं तुम कौन हो.
पहले तो उस तस्कर ने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया, लेकिन जब उसने आख़िरकार फ़ोन निकाला और बीबीसी ने उसकी स्क्रीन पर आने वाली कॉल का नंबर देखा, तो टीम को उसके अपराध का पक्का सबूत मिल गया. क्योंकि वो कॉल बीबीसी टीम ही उसे कर रही थी. उसने कहा था कि वह कुछ पैसों के बदले बीबीसी टीम के सदस्य को उत्तरी फ़्रांस के लिए निकलने वाली उस नाव में बैठा सकता है जिसमें हथियारबंद गार्ड भी मौजूद रहेंगे. तस्कर ने इसके लिए 1,500 यूरो यानी 1,269 पाउंड की क़ीमत मांगी थी.
तस्कर आमतौर पर ऐसी नावों पर 60 से अधिक लोगों को भर देते हैं, लेकिन इस नाव पर 100 से अधिक लोग सवार थे. उन्हें हाल ही में चेतावनी दी गई थी कि उन्हें कुछ दिनों के भीतर बेल्जियम से निर्वासित किया जा सकता है. उनके सभी बच्चे यूरोप में पैदा हुए और स्वीडन में रिश्तेदारों के साथ रहते हुए बड़े हुए थे, लेकिन उन्हें देश छोड़ने का अंतिम आदेश भी दिया गया था.
अप्रैल की उस रात को नाव हादसे में जितने भी लोग बच गए थे, बीबीसी की टीम ने उन सभी को खोजने और उनसे बात करने की कोशिश की. बीबीसी की टीम ने फ़्रांस में तट के पास अनौपचारिक प्रवासी शिविरों में शरण चाहने वालों के लिए बने हॉस्टल में कुछ लोगों से मुलाकात की.अवैध रूट से ब्रिटेन जाने की कोशिश में जान गंवा चुकी बच्ची की कहानी
एक बार कीमत तय हो जाने के बाद ज़्यादातर लोग बिचौलियों के पास इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से पैसा जमा कराते हैं. पैसों को लेकर शायद ही कभी बहुत ज़्यादा मोल-तोल होता था. फिर बीबीसी की टीम आगे बर्लिन तक गई जहां एक और सोर्स से जबल की पहचान हुई और उसने बीबीसी को बताया कि जबल ने पहली बार कामयाब ना रहने पर दूसरी बार क्रॉसिंग की कोशिश का वादा किया था. बीबीसी के सभी सोर्स यह बता रहे थे कि जबल बेल्जियम में था, शायद एंटवर्प में.
बीबीसी की टीम ने उस कॉल के लिए करीब दो हफ्तों तक इंतज़ार किया. लेकिन आख़िरकार देर रात एक दिन बीबीसी की टीम का फोन बजा. कॉल पर जबल ने कहा, "हैलो. तो आप ब्रिटेन जाना चाहते हैं? आपको कितनी सीटें चाहिए? क्या आप तैयार हैं?" जब बीबीसी ने इंटरनेट पर इसी तरह की तस्वीरों की खोज की, तो लक्ज़मबर्ग में एक नए आधिकारिक शरणार्थी और प्रवासी स्वागत केंद्र के बारे में 2022 के एक लेख में एक बहुत ही करीबी और समान तस्वीर मिली. बीबीसी की टीम तुरंत ही वहां पहुंची.
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