बीटेक, MBA शैलेष का बदला मन, अमेरिका में नौकरी छोड़ी, वैराग्य से पहले मां-बाप की चुकाई पाई-पाई, अब बड़े जैन स...

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वैराग्य की राह बड़ी कठिन मानी गई है. लेकिन, जिसका मन परिवर्तित हो गया, फिर उसके लिए यह रास्ता सहज हो जाता है. कुछ ऐसी ही कहानी नागपुर के शैलेष की है. वह संत के सानिध्य में ऐसा आए कि सीधे वैराग्य को ही चुना. सबकुछ छोड़कर जैन मुनि बने और आज देश के प्रसिद्ध संत हैं. पढ़ें कहानी...

नागपुर में जन्मे निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज के बचपन का नाम शैलेष उर्फ रिंकू था. इनका जन्म 31 मई 1973 दिन बुधवार को नागपुर में हुआ था. इनके 3 भाई नीलेश, रूपेश और धर्मेश हैं. माता सुषमा देवी गृहिणी हैं, जबकि पिता का स्वर्गवास हो गया है. 31 जुलाई 1996 को गुरु पूर्णिमा के दिन सिद्ध क्षेत्र महुआजी सूरत गुजरात में निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज ने ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया था, तब उनकी उम्र 23 वर्ष की थी.

निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज की मुनि दीक्षा के पूर्व उनके करीबी और बुआ के लड़के बड़कुल सुभाष चंद्र बतलाते हैं कि मुनि वीर सागर जी महाराज से आचार्य श्री ने कहा था कि वैराग्य धारण करने से पहले तुम्हारे माता-पिता ने जो तुम्हारी पढ़ाई पर पैसे खर्च किए हैं, पहले उसे लौटाकर आओ. फिर क्या था. शैलेष उर्फ रिंकू ने रात-दिन कड़ी मेहनत की और माता-पिता ने जो उनकी पढ़ाई में रुपये खर्च किए थे, उसकी पाई-पाई उन्होंने लौटा दी.

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