अब इन पुरानी बातों का कोई मतलब नहीं है और वह अब भी अपने भाई के खिलाफ दीवानी मुकदमा दायर कर सकती है, लेकिन उनकी ऐसी ख्वाहिश नहीं है.
कोल्हापुर की रहने वाली ज्योत्सना दासलकर कहती हैं, "अब मुझे प्रॉपर्टी में हिस्सा नहीं चाहिए. हां, मेरी ज़िंदगी में कई बार ऐसा वक्त आया जब मुझे भारी आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा, लेकिन अब वह वक्त गुज़र गया है. हालांकि, मैं निश्चित रूप से नौजवान महिलाओं, खासकर जो विधवा, तलाकशुदा या अविवाहित हैं, को यही सलाह दूंगी कि वे अपने हक का दावा करें और यह भी जान लें कि कानून अब उनकी मदद कर सकता है. यह जानना अच्छा है कि आखिरकार, मेरे पास अधिकार है.
लेकिन फिर भी यही मानती हैं कि यह फैसला महत्वपूर्ण है. जो लोग विरासत में बराबर का हर रखते हैं, उन्हें सहदायिक कहा जाता है.
Trail Courts fail to protect right of woman to even residence in her possession in property of her husband without permission of husband & in-laws. Forcible dowry demand by in-laws to demand share. More cases for judicial shops & income. Aggrieved Woman has no right in reality.
महिलाएं जिस दिन पिता की प्रॉपर्टी में अपना हक मांगेगी, उसी दिन उनको मायके के सच्चे प्यार का भी पता चल जाएगा।
सराहनीय फैसला है लेकिन मुस्लिम महिलाओं के मामलों में भी यही प्रावधान होना चाहिए उनको भी हक़ मिलना चाहिए
महिलाएं हों या minorities सभी को उनके अधिकारों की कुंजी है.. Common Civil Code..
Common Civil Code.. जब तक नहीं आयेगा.. भारत में स्वस्थ राजनीतिक srltability संभव ही नहीं..
Dear Western world, Please stop teaching us what Hinduism and Hindutva are! We are the only civilization that never attacks first on anyone. Please focus on your own, who has invaded many civilizations.
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