न सिर्फ अर्थव्यवस्था, आजादी भी खतरे में

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एनएसओ के मुताबिक मार्च 2021 में खत्म होने वाले वित्त वर्ष में जीडीपी (स्थिर मूल्यों पर) 134.09 लाख करोड़ रहेगी, यानी पिछले साल के मुकाबले ऋणात्मक आठ फीसद रहेगी। यह बहुत ही बुरा होगा।

भारत की अर्थव्यवस्था सुधार के रास्ते पर है या नहीं, यह एक बहस का विषय है। सरकार तीसरी तिमाही में 0.4 फीसद वृद्धि के एनएसओ के अनुमान का ‘जश्न’ मना रही है। सांख्यिकीय त्रुटियों की गुंजाइश छोड़ दें तो 0.4 फीसद का मतलब शून्य फीसद भी हो सकता है और 0.8 फीसद भी। सरकार इस बात को नजरअंदाज कर गई है, जिसमें एनएसओ ने अपने प्रेस बयान में कहा था कि अनुमानों में भारी संशोधन हो सकते हैं। हम चाहते हैं कि अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर आए और कम से कम सालाना जीडीपी 2018-19 के लिए अनुमानित 140.

4 फीसद रहे। 4- प्रति व्यक्ति जीडीपी एक लाख रुपए से गिर कर अट्ठानबे हजार नौ सौ अट्ठाईस रुपए पर आ गई। जाहिर तौर पर इसका निष्कर्ष यह है कि हरेक व्यक्ति अपेक्षाकृत गरीब होता चला गया , करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए। जो पहले ही से गरीबी रेखा के नीचे थे, वे अभाव में घिर गए और साथ ही पहले से ज्यादा कर्ज में डूब गए। 5- मंदी और महामारी ने अर्थव्यवस्था को चौपट करने से भी ज्यादा नुकसान पहुंचाया है, इसने शिक्षा, पोषण और लोगों के स्वास्थ्य और गरीबों व उनके बच्चों पर गंभीर असर डाला है। आरबीआइ सतर्क है...

 

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