निजी डाटा सुरक्षा कानून पर मंडरा रहे हैं सवाल | DW | 02.12.2020

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प्रस्तावित डाटा सुरक्षा कानून के कई बिंदुओं से संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य इत्तफाक नहीं रखते हैं. सबसे प्रमुख चिंता सरकार को हासिल असीम शक्तियों पर है. data dataprotection

पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल 2019 के परीक्षण के लिए तीस सदस्यों वाली संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया गया था. बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी इस समिति की प्रमुख हैं. समित उद्योग जगत के प्रतिनिधियों, सरकारी संस्थाओं और थिंक टैंकों के प्रतिनिधियों के साथ 30 से अधिक बैठकें कर चुकी हैं. द इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक संयुस्क संसदीय समिति, जेपीसी के कुछ सदस्यों ने सुझाव दिया कि गैर व्यक्तिगत डाटा मौजूदा कानून की परिधि में नहीं रखा जाना चाहिए.

अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक विपक्षी नेताओं का कहना है कि डाटा सुरक्षा प्राधिकरण के अध्यक्ष के चयन के लिए अधिक न्यायिक प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए, जबकि प्रस्तावित चयन पैनल में सिर्फ सरकारी प्रतिनिधि हैं. एक लिहाज से देखें तो डाटा सुरक्षा प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र सीमित हैं और सरकार को ही सर्वेसर्वा रखा गया है. भारत के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट का जज, हाईकोर्ट का रिटायर्ड जज, विपक्षी दलों के नेता और स्वतंत्र उद्योग विशेषज्ञों को भी सेलेक्शन पैनल में रखे जाने की मांग की गई है.

प्रस्तावित कानून के प्रावधानों के मुताबिक भारत में इस्तेमाल होने वाले निजी डाटा को प्रोसेस करने का अधिकार कानून को होगा. यही बात कंपनियों के डाटा या कंपनियों तक पहुंचने वाले ग्राहकों के डाटा पर भी लागू होगी. सार्वजनिक हित, कानून व्यवस्था, आपात परिस्थितियों में राज्य, यूजर से सहमति लिए बगैर उसके डाटा को प्रोसेस कर सकता है. अन्यथा सहमति अनिवार्य होगी.

कानून में डाटा को स्थानीकृत करने का प्रस्ताव है. इसके मुताबिक पर्सनल डाटा को प्रोसेस करने वाली संस्था या इकाई को भारत स्थित किसी सर्वर या डाटा सेंटर में भी उक्त डाटा को अनिवार्य रूप से स्टोर करना होगा. फेसबुक जैसी बड़ी कंपनियां तो अपने अपार संसाधनों की बदौलत ऐसा कर सकती हैं लेकिन छोटी कंपनियों के लिए तो फिर भारत में रहना या निवेश करना मुश्किल होता जाएगा. नैसकॉम के शब्दों में ये एक तरह का ट्रेड बैरियर ही कहा जाएगा. कुछ जानकार डाटा माइनिंग से निपटने के इस तरीके पर सवाल उठाते हैं.

 

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