तकनीक की चुनौती और समाज

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यह एक विरोधाभास ही है कि हम मनुष्य के मस्तिष्क को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं, पर बाढ़, सूखा, हिमनदों के टूटने, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं को नहीं रोक पा रहे हैं। अतिसूक्ष्म विषाणु के प्रकोप को भी रोक पाने में समर्थ नहीं हैं। इसलिए मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि प्राकृतिक आपदाओं के समय विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्यों काम नहीं आती।

ज्योति सिडाना वर्तमान युग में प्रौद्योगिकी और मानव जीवन को एक दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता, या कहें कि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। आज जीवन का ऐसा कोई पक्ष नहीं है जहां प्रौद्योगिकी का उपयोग न होता हो। प्रौद्योगिकी के बिना मनुष्य अपने को पंगु समझने लगे हैं। मानवीय ज्ञान से ही प्रौद्योगिकी का उदभव और विकास संभव हुआ है। लेकिन अब यही प्रौद्योगिकी ज्ञान पर हावी होती जा रही है। प्रौद्योगिकी के विकास के आगे ज्ञान की सीमा रेखाएं नजर आने लगी हैं। जबकि यह एक यथार्थ है कि बिना ज्ञान के...

करने की कोशिशें कर रहे हैं। यानी अब प्रौद्योगिकी मनुष्य के मस्तिष्क में यह तय करेगी कि कौनसे पक्ष अच्छे हैं और कौनसे बुरे? यह एक तथ्य है कि मनुष्य अपने सुख का मूल्यांकन तभी कर सकता है जब उसने दुख की अनुभूति की हो या दुख का अनुभव तब कर सकता है जब उसे सुख की अनुभूति हुई हो, अन्यथा वह इन पक्षों का मूल्यांकन नहीं कर सकता। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसा करके मनुष्य के भीतर विद्यमान तुलनात्मक कौशल समाप्त हो रहा है। इसे मनुष्यत्व को समाप्त करने की घातक कोशिशों के रूप में देखना गलत नहीं होगा।...

 

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