पितृसत्ता की परतें

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सन 1960 के दशक में जब ‘स्त्री मुक्ति आंदोलन’ शुरू हुआ था, तभी से अक्सर स्त्री स्वतंत्रता की बात बड़े जोर-शोर से उठाई जाती है।

गरिमा सिंह सवाल है कि इस स्त्री स्वतंत्रता का अभिप्राय क्या है? दैहिक-मानसिक स्वतंत्रता या फिर सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता? एक स्त्री किस तरह की स्वतंत्रता चाहती है और क्यों? यह सभी जानते हैं कि हमारा भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज रहा है, जहां आज भी स्त्रियों की स्थिति उतनी सुदृढ़ नहीं है, जितनी अन्य विकसित देशों में है। आज अगर महिलाएं पढ़-लिख कर अपने बलबूते पर आगे आ भी रही हैं तो भी वहां पर भी स्त्री-पुरुष असमानता मौजूद है। आंकड़ों के ढेर पर बैठ कर इस बात की कल्पना करना आसान है कि देश की आर्थिक...

से बेदखल कर दिया जाता है। मुझे अक्सर यह लगता है कि सामाजिक रूप से अब भी हम काफी पिछड़े हैं। स्त्री स्वतंत्रता के नाम पर शिक्षा और नौकरी करने की छूट? इस आजाद देश में अपनी इच्छा से पढ़ने, नौकरी करने, न करने, विवाह करने या न करने की स्वतंत्रता जो हमारा संविधान हमें सालों पहले दे चुका है, वहां यह अनुमति का प्रश्न आता कहां से है? इस देश में स्त्री शिक्षा और स्वतंत्रता का आलम यह है कि लड़कियां खुद इस यह बताते हुए गर्व महसूस करती हैं कि मेरे घर वालों या ससुराल वालों ने मुझे आगे पढ़ने, नौकरी करने, साड़ी के...

 

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