छत्तीसगढ़: बस्तर के एक सुदूर गांव में इंसाफ की आस में रखा है एक शव

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छत्तीसगढ़: बस्तर के एक सुदूर गांव में इंसाफ की आस में रखा है एक शव Bastar Naxalism chattisgarh बस्तर नक्सलवाद छत्तीसगढ़

दिन निकलने के बाद जब तापमान बढ़ना शुरू हो गया, छह लोगों ने मिलकर गामपुर गांव में समतल कर दी गई मिट्टी को तेजी से खोदना शुरू कर दिया.

वह गड्ढ़ा किसी कब्र के गड्ढे की तरह लग रहा था, लेकिन यह ऐसा था नहीं. भारत के सबसे बड़े आदिवासी समूहों में से एक गोंड आदिवासी मृतकों को दफनाते नहीं हैं. वे उनका दाह-संस्कार करते हैं. ग्रामीणों ने उसके बाद से कई बार बिलासपुर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की कोशिश की है. लेकिन हर बार महामारी के कारण यह प्रक्रिया टलती चली गई.

बस्तर रेंज में न्यायेतर हत्याएं एक आम बात है. इससे भी ज्यादा आम है लोगों को उनके गांवों से उठा लेना और बाद में उन्हें ‘फरार’ विद्रोही या सशस्त्र विद्रोह में शामिल ‘नक्सली’ करार देना. सानू के जरिए ही बदरू के परिवार को इस घटना की जानकारी मिली. कुछ मिनटों के भीतर ही उनकी चाची कोसी माडवी उस घटनास्थल पर पहुंच गईं.कोसी बताती है, ‘हम उस स्थान पर पहुंच पाते, उससे पहले हमने देखा कि उन्होंने बदरू को कपड़े में बांध दिया था और वे उसके शव को घसीट कर ले जा रहे थे. मैंने उसके शव को छोड़ देने की मांग करते हुए उनका माडवीपारा से वेंगपाल तक पीछा किया. उन्होंने मुझे पिस्तौल के कुंदे से मारा.’

28 जनवरी 2017 को 22 वर्षीय भीमा कड़ती और उसकी 15 वर्षीय साली सुखमती हेमला की हत्या ठीक इसी तरह से की गई थी. उनकी बर्बर हत्या से महज छह दिन पहले भीमा की पत्नी जोगी ने दूसरी बेटी, बूमो को जन्म दिया था. पुलिस की बर्बरता भीमा और सुखमती की हत्या के साथ ही बंद नहीं हुई. जैसे ही उनकी मृत्यु की खबर उनके परिवार तक पहुंची, भीमा के बड़े भाई बामन कड़ती ने न्याय की मांग की.

दूसरी ऑटोप्सी जगदलपुर जिला अस्पताल में की गई. पीड़िता के परिवार ने दंतेवाड़ा और जगदलपुर जिला अस्पतालों पर पुलिस का पक्ष लेने और उसके शव पर यौन हिंसा के चिह्नों को दर्ज न करने का आरोप लगाया है. हर नई घटना के साथ गामपुर के हालात और बिगड़ते ही गए हैं. जंगलों के काफी भीतर स्थित यह गांव बाहरी दुनिया की पहुंच से लगभग दूर ही है. यहां तक पहुंचने के लिए मुझे पैदल 25 किलोमीटर चलना पड़ा, तीखी चढ़ाई वाली वेंगपाल पहाड़ी को पार करना पड़ा और कई उथले पानी के दरियों को पार करना पड़ा.

भीष्म कुंजाम पूछते हैं, ‘सबसे नजदीकी पुलिस स्टेशन यहां से 25 किलोमीटर दूर है. जब सुरक्षा बल गांव में दाखिल होते हैं और हम पर हमला करते हैं, तब हम मदद की गुहार भी कैसे लगा सकते हैं?’ डीआरजी के लोगों ने कथित तौर पर भीष्म कुंजाम की पिटाई की थी.ने 31 मार्च को गांव का दौरा किया; भीष्म के शरीर पर लाल और काले निशान उस समय तक देखे जा सकते थे. एक 80 वर्षीय महिला बांदी कुंजाम के ऊपरी जांघ और नितंब पर भी निशान थे. उन्होंने शिकायत की, ‘वर्दी वाले एक व्यक्ति ने बंदूक के कुंदे से मुझ पर वार किया.

 

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