धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार पिछले कई सालों से किसानों की सहकारी समितियों के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की ख़रीदी करती रही है. पिछले दो सालों से न्यूनतम समर्थन मूल्य और उस पर दिये जाने वाले बोनस को मिला कर किसानों को धान के लिए प्रति क्विंटल 2500 रुपये मिलते हैं.
राज्य सरकार का दावा है कि छत्तीसगढ़ में 2017 में जहां 76 प्रतिशत किसानों ने एमएसपी पर धान बेचा था, वहीं 2018 में यह आंकड़ा 92.61 प्रतिशत पहुँच गया. 2019 में 94.02 प्रतिशत किसानों ने धान बेचा. पिछले सप्ताह ही कोंडागांव ज़िले के मारंगपुरी गांव के किसान धनीराम पर सहकारी बैंक का 61 हज़ार रुपये का क़र्ज़ था. इसके अलावा खाद-बीज के लिए उसने व्यापारियों से भी क़र्ज़ ले रखा था. धनीराम की पत्नी सुमित्रा का कहना है कि पति ने 100 क्विंटल धान बेच कर क़र्ज़ चुकाने की तैयारी कर रखी थी. लेकिन अधिकारियों ने उसे केवल 11 क्विंटल धान ही बेचने का पात्र बता कर उसे टोकन थमा दिया.
कौशिक कहते हैं, "पंजीयन कराने वाले किसानों की संख्या और खेती का रकबा चौंकाने वाला है. इस साल किसानों की संख्या बढ़ गई है, लेकिन उनकी खेती का रक़बा देखें तो वह घट कर प्रति किसान 1.29 हेक्टेयर या 3.1 एकड़ रह गया है."का दावा कि सरकार के दावे महज़ काग़ज़ी हैं और किसान परेशान है. जेएल भारद्वाज का कहना है कि राज्य में केवल 50 प्रतिशत किसानों का ही धान सरकार ख़रीदती है. हालांकि वे मानते हैं कि राज्य में 76 प्रतिशत किसान सीमांत किसान हैं और उनमें से अधिकांश मज़दूरी करते हैं.
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