ननयांग टैक्नोलॉजीकल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर लुओ दहाई ने बताया, "कोरोनावैक पारंपरिक तरीक़े से बनाई गई वैक्सीन है. पहले भी कई जानी-मानी वैक्सीन बनाने के लिए इसी तरीक़े को अपनाया गया है."
लांसेट में छपे इस पेपर के लेखक झू फेंगकी ने कहा कि इस वैक्सीन के पहले चरण में 144 लोगों ने हिस्सा लिया और दूसरे चरण में 600 लोगों ने. इस ट्रायल के नतीजे से पता चलता है कि इमरजेंसी की स्थिति में ये वैक्सीन इस्तेमाल के लिए ठीक है. "शुरूआती डेटा के आधार पर कह सकते हैं कि कोरोनावैक एक असरदार वैक्सीन है लेकिन अभी तीसरे चरण के ट्रायल के नतीजों का इंतज़ार करना चाहिए."कंपनी एक साल में कितनी डोज़ बना सकती है?
विश्लेषक बताते हैं कि चीन वैक्सीन कूटनीतिक रेस जीतने के लिए क्या कर रहा है. हाल ही में ख़बर आई थी कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वैक्सीन ख़रीदने के लिए क़र्ज़ के तौर पर अफ्रीकी महाद्वीप के लिए दो अरब डॉलर, लातिन अमेरिकी और कैरिबियाई देशों के लिए एक अरब डॉलर रखे हैं. लेकिन अभी क़र्ज़ की शर्तों के बारे में ज़्यादा नहीं पता.
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