कई पेचीदा तजुर्बों के बाद पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम इमरान खान को पता चल गया है कि सियासत क्रिकेट के मुकाबले कहीं ज्यादा मुश्किल खेल है. वर्ल्ड कप जीतने वाले क्रिकेट कप्तान क्रिकेट पिच पर अपनी कामयाबियों की बात करते या अपने खेल के कारनामों की तुलना अपने सियासी जद्दोजहद से करते नहीं अघाते हैं.
उधर, इमरान ने विपक्ष पर भ्रष्ट ''अपराधियों'' का जमावड़ा होने का आरोप लगाया, जो उनकी ओर से लाई जा रही जवाबदेही से बचने के लिए साथ आ गए हैं. विपक्ष के नेताओं के खिलाफ अनगिनत मामले दर्ज किए गए हैं और सत्ता में रहने के दौरान उन पर भ्रष्टाचार करने के आरोप लगाए गए हैं. उन्होंने और उनकी पार्टी पीटीआइ के मंत्रियों ने बढ़-चढ़कर यह भी दावा किया है कि उनके विरोधियों की ''पाकिस्तान के दुश्मनों'' के साथ साठगांठ है.
परेशानियां इस बात से और पेचीदा हो गईं कि इमरान और पीटीआइ की उनकी अंदरूनी मंडली में किसी को सरकार चलाने या अफसरशाही को संभालने का कोई तजुर्बा नहीं था. नतीजतन कई भयंकर गलतियां हुईं और कई फैसले उलटने पड़े. सरकार का पहला बड़ा इम्तिहान उस चीज में सुधार लाना था जिसे इमरान बार-बार ''बर्बाद अर्थव्यवस्था'' कहते थे. मगर उनकी सरकार इस बात को लेकर पसोपेश में रही कि मुल्क को संभावित वित्तीय संकट से बचाने के लिए आइएमएफ का 6 अरब डॉलर का कार्यक्रम स्वीकार करे या नहीं.
गनीमत इतनी है कि चालू खाते का जबरदस्त घाटा अधिशेष में बदल गया है और विदेशों में रह रहे पाकिस्तानियों की तरफ से भेजी जाने वाली रकम पिछले कुछ महीनों में बढ़ी है. मगर इसके बारे में भी विश्लेषक आगाह कर रहे हैं कि यह महामारी की वजह से दुनिया भर में आयद यात्रा की पाबंदियों के चलते हो सकता है.इमरान की राजनीति हमेशा यही रही है कि खुद को बाहरी शख्स की तौर पर पेश किया जाए जिसने पीपीपी और पीएमएल-एन के ''भ्रष्ट'' नेतृत्व को आड़े हाथों लेने का बीड़ा उठाया है.
अंदरूनी लोगों का कहना है कि शरीफ के विदेश उड़ जाने को लेकर इमरान के बढ़ते गुस्से की वजह से ही बाद में मरियम के लंदन में पिता के पास जाने में अड़ंगे लगाए गए. इमरान ने कसम खाई कि वे सात साल की सजा की बाकी मियाद पूरी करने के लिए शरीफ को वापस लाने में कोई कसर नहीं उठा रखेंगे. इनमें सबसे ताजातरीन घोटाला जनरल आसिम सलीम बाजवा से जुड़ा है जो पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना के प्रमुख हैं और इमरान के सलाहकार थे. यहां तक कि पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने भी एनएबी की यह धारणा बनने देने के लिए आलोचना की है कि उसका इस्तेमाल राजनैतिक उत्पीडऩ के लिए किया जा रहा है.
पीडीएम के जलसे में हुई घटनाओं से सैन्य प्रतिष्ठान स्तब्ध रह गया. इसने हमेशा से राजनेताओं के साथ एक गुप्त समझौता रखा है कि देश की नीतियों में बहुत अधिक हस्तक्षेप के बावजूद, कभी भी सार्वजनिक रूप से सेना की भूमिका की चर्चा नहीं की जाएगी. हालांकि, पर्दे के पीछे इमरान सरकार के प्रवक्ताओं के माध्यम से एक कहानी बनाई जा रही थी कि विपक्ष भारत जैसे पाकिस्तान के दुश्मनों के हाथों में खेल रहा है जो देश की फौज को नीचा दिखाना चाहते हैं. लेकिन प्रत्येक राजनैतिक बयानबाजी की अक्सर एक प्रतिक्रिया होती है.
किसान आंदोलन कहाँ है।
जिस दिन पाकिस्तान मे सेना व मुल्ला मालवीयों का दब दबा ख़त्म हो जाएगा उस दिन पाकिस्तान पाक हो जाऐगा। आतंकी मुल्क का ठप्पा स्वत: ख़त्म होजाएगा।
It's TRUE FACT
यह फोटो भी पाकिस्तान का ही है क्या
पाकिस्तान की जानकारी रखने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद पर दलाली तो आपको भारत सरकार के खिलाफ बोलने वालों की आवाज दबाने की मिल रही हैं
वह कौन सी नस्ल के कुत्ते 🦮🐕🦺 होते हैं जो देश में गरिबी, बेरोजगारी, बलात्कार पर चुप्पी साधकर बिल में घुस जाते हैं.. और हिंदू, मुस्लिम पर भोंकते है..?
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