भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 11 और 12 अक्टूबर हुई मुलाकात में भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने पर जोर देने की बात हुई. जब ये दोनों नेता मिल रहे थे उसी दौरान दक्षिण एशियाई देश थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक में इन दोनों देशों के साथ 16 देशों के वाणिज्य मंत्रियों की मुलाकात हो रही थी. भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल इस बैठक में भाग लेने गए हैं.
आरसीईपी समझौते के मुताबिक इन 16 देशों के बीच में एक इंटिग्रेटेड मार्केट बनाया जाएगा, जो इन देशों में आपसी व्यापार को आसान करेगा. इससे इन देशों में एक दूसरे के उत्पाद और सेवाएं आसानी से उपलब्ध हो सकेंगे. इस समझौते में उत्पाद और सेवाओं, निवेश, आर्थिक और तकनीकी सहयोग, विवादों के निपटारे, ई कॉमर्स, बौद्धिक संपदा और छोटे-बड़े उद्योग शामिल होंगे.इन 16 देशों में दुनिया की लगभग 45 प्रतिशत जनसंख्या रहती है. दुनिया के निर्यात का एक चौथाई इन देशों से होता है.
आरसीईपी में शामिल क्षेत्रों में काम कर रही भारत की कंपनियों को एक बड़ा बाजार मिल सकेगा. इस समझौते के होने के बाद घरेलू बाजार में मौजूद बड़ी कंपनियों और सेवा प्रदाताओं को भी निर्यात के लिए एक बड़ा बाजार मिल सकेगा. साथ ही भारत में इन देशों से आने वाले उत्पादों पर टैक्स कम होगा और ग्राहकों को कम कीमत पर ये सामान उपलब्ध हो सकेंगे.भारत के सामने सबसे बड़ी परेशानी है भारत का व्यापार घाटा. जब किसी देश का आयात उस देश के निर्यात से ज्यादा हो तो इस स्थिति को व्यापार घाटा कहा जाता है.
दूसरी चिंता ये है कि जिस तरह भारत की कंपनियों को एक बड़ा बाजार मिलेगा वैसे ही दूसरे देशों की कंपनियों को भी भारत जैसा बड़ा बाजार मिलेगा. ऐसे में चीन समेत सभी दूसरे देश सस्ती कीमतों पर अपना सामान भारतीय बाजार में बेचना शुरू करेंगे. इससे भारतीय बाजार के उत्पादकों को परेशानी होगी. इसका उदाहरण बांग्लादेश से दिया जा सकता है. भारत और बांग्लादेश के बीच मुक्त व्यापार का समझौता है. इसके चलते बांग्लादेश में बनने वाला कपड़ा सस्ती दरों पर भारत में उपलब्ध होता है.
आरसीईपी समझौते पर छोटे-बड़े कई उद्योग सरकार का विरोध कर रहे हैं. मोदी सरकार के हर कदम का साथ देने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ संगठनों ने इस समझौते का विरोध किया है. स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय मजदूर संघ ने भारत के इस समझौते में शामिल होने का विरोध कर 12 अक्टूबर से 10 दिन का विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया है. इन संगठनों का कहना है कि इस समझौते से भारत का बाजार चीनी सामान से 'भर जाएगा'.
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