किसी को फ़र्ज़ी केस में फंसाकर उसकी ज़िंदगी ख़राब कर देना इतना आसान क्यों है

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किसी को फ़र्ज़ी केस में फंसाकर उसकी ज़िंदगी ख़राब कर देना इतना आसान क्यों है WrongfulProsecution Courts Policing JusticeSystem Society न्याय अदालत पुलिस न्यायप्रणाली समाज

‘कोई न कोई जरूर जोसेफ के के बारे में झूठी सूचनाएं दे रहा होगा, वह जानता था कि उसने कोई गलत काम नहीं किया है लेकिन एक अलसुबह उसे गिरफ्तार किया गया.’

मालूम हो कि यह महान लेखक- जिसे बीसवीं सदी के विश्व साहित्य की अज़ीम शख्सियत समझा जाता है, जो बहुत कम उम्र में चल बसे, चाहते थे कि उनकी तमाम पांडुलिपियां- जिसमें उनका यह अधूरा उपन्यास भी शामिल था – उनके मरने के बाद जला दी जाए. मालूम हो इन सभी को एक साल से अधिक समय तक ऐसे फर्जी आरोपों के लिए जेल में बंद रहना पड़ा था और अदालती कार्रवाई में शामिल होने के लिए आना पड़ता था.

यह सिस्टम किसी की जिंदगी किस तरह बर्बाद कर सकता है, उसका एक सबूत हम 20 साल पहले बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार हुएमें भी देख सकते हैं, जब उन्हें सात माह के बाद रिहा किया गया था. याद रहे उच्च अदालत के सख्त एवं संतुलित रवैये का बिना यह मुमकिन नहीं थी, जिसने डॉ. कफील खान के खिलाफ दर्ज इस केस को ही ‘अवैध’ बताया.

आमिर को जिस पीड़ादायी दौर से गुजरना पड़ा, जिस तरह संस्थागत भेदभाव का शिकार होना पड़ा, पुलिस की सांप्रदायिक लांछना को झेलना पड़ा, यह सब एक किताब में प्रकाशित भी हुआ है. शीर्षक से प्रकाशित इस किताब के लिए जानी-मानी पत्रकार एवं नागरिक अधिकार कार्यकर्ती नंदिता हक्सर ने काफी मेहनत की है. अख़बार के प्रतिनिधि से बात करते हुए उन्होंने यह भी जोड़ा कि जिन सुरक्षा अधिकारियों ने इस केस की जांच की है, उन्हें भी जवाबदेह बनाना चाहिए. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि पुलिस के इस पक्षपातपूर्ण जांच का नतीजा है कि उन 67 पीड़ितों के परिवारों के लिए भी न्याय से इनकार किया गया है और हम शायद कभी नहीं जान पाएंगे कि आखिर इन बम धमाकों को किसने अंजाम दिया था!

मानवाधिकार आयोग ने कहा कि ‘हमारी यह मुकम्मल राय है कि इन लोगों को इन झूठे एफआईआर के चलते निश्चित ही भारी मानसिक यातना से गुजरना पड़ा, जो उनके मानवाधिकार का उल्लंघन था और राज्य सरकार को उन्हें मुआवजा देना ही चाहिए.’ ‘सर, क्या वह रक़म मेरी पत्नी और बच्चों को लौटा सकती है, जो भयानक गरीबी में गुजर गए जिन दिनों मैं बिना किसी अपराध के जेल में सड़ रहा था.’

दरअसल हम सर्वोच्च न्यायालय के एक अन्य फैसले को याद कर सकते हैं जिसने मुआवजे की तमाम दलीलें इस वजह से सिरेसे खारिज की थी कि उसका कहना था कि इससे एक गलत नज़ीर कायम हो सकती है.याचिका विचाराधीन है

 

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Burocrate aur leader ke syndicate se yeh kam Bharat me ho raha hai..jiska khamiyaja muslim,Dalit Bhaiyo par jyada hota jai

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