विशेषज्ञों का कहना है कि यह धारणा कि ओमिक्रोन एक प्राकृतिक टीका है... यह बेहद खतरनाक विचार है जो गैर-जिम्मेदार लोगों द्वारा फैलाया जा रहा है। ऐसे लोग जो कोविड प्रोटोकाल को ध्यान में नहीं रखते हैं।
विशेषज्ञों ने कहा कि COVID-19 का ओमिक्रोन वैरिएंट अन्य वेरिएंट की तुलना में बहुत अधिक संक्रामक है। हालांकि यह हल्के संक्रमण, कम मौतों का कारण बन रहा है। इससे वाहियात धारणाएं पैदा हो रही हैं कि यह एक प्राकृतिक टीके के रूप में काम कर सकता है। जाने-माने वायरोलाजिस्ट शाहिद जमील ने कहा कि यह धारणा कि ओमिक्रोन एक प्राकृतिक टीका है गैर-जिम्मेदार लोगों द्वारा फैलाया गया एक खतरनाक विचार है।
भारतीय SARS-COV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टिया के सलाहकार समूह के पूर्व प्रमुख शाहिद जमील ने कहा कि जो लोग ऐसी वकालत करते हैं वे महामारी की गंभीरता को ध्यान में नहीं रखते हैं। खास तौर पर उस वैरिएंट के बारे जिसे बहुत कम समझा गया है। भारत में जहां कुपोषण, वायु प्रदूषण और मधुमेह जैसी समस्याएं बड़े पैमाने पर हैं। लोगों को एक ऐसे वायरस के संपर्क में आने देना जिसके बारे में बहुत कम जानकारी है। किसी भी लिहाज से यह अच्छी बात नहीं...
वहीं पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन आफ इंडिया में प्रोफेसर और लाइफकोर्स एपिडेमियोलॉजी के प्रमुख गिरिधर आर. बाबू ने कहा कि ओमिक्रोन कितना भी हल्के संक्रमण वाला वायरस क्यों न हो यह किसी भी सूरत में वैक्सीन तो नहीं हो सकता है। ऐसे में लोगों को गलत सूचनाओं से दूर रहना चाहिए। टीकाकरण की तुलना में प्राकृतिक संक्रमण किसी भी प्रकार के वायरस खिलाफ लोगों की रक्षा नहीं कर सकता है।
उजाला सिग्नस ग्रुप आफ हास्पिटल्स के संस्थापक निदेशक शुचिन बजाज ने कहा कि बीमारी के दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं। ऐसे में लोगों को इससे सावधान रहने की जरूरत है। यह देखा गया है कि यह वायरस फेफड़ों के अलावा कई अन्य अंगों में छह महीने से अधिक समय तक बना रहता है। इसलिए हम वास्तव में नहीं जानते कि इस वायरस के दीर्घकालिक प्रभाव क्या हैं या यह कौन सी विसंगतियां पैदा कर सकता है। हम पहले से ही COVID रोगियों में ब्रेन फॉगिंग और गंभीर साइनस टैचीकार्डिया जैसी समस्याओं को देख रहे...
कौन मूर्ख लोग हैं ये?
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