ने 2015 में अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किया था. हालांकि ट्रंप ने बाद में उससे हटने का फ़ैसला किया. उन्हें बाइडन ने जलवायु पर राष्ट्रपति के विशेष दूत की भूमिका के लिए चुना है.नेशनल इंटेलिजेंस संभालने वाली पहली महिला बनेंगी. वो भी पूर्व में ओबामा प्रशासन के साथ जुड़ी रही है., बाइडन प्रशासन में अमेरिका के नए विदेश मंत्री होंगे. वे ओबामा प्रशासन में उप-विदेश मंत्री और उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके हैं. तब बाइडन उप राष्ट्रपति थे.
अपने प्रशासन को ओबामा प्रशासन की तीसरा टर्म ना कहने के पीछे उन्होंने वजहें भी गिनाई. उन्होंने कहा, "हम ओबामा-बाइडन प्रशासन की तुलना में एक अलग और नई दुनिया का सामना कर रहे हैं."टाइम्स ऑफ़ इंडिया की डिप्लोमेटिक एडिटर इंद्राणी बागची कहती हैं, "जो बाइडन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है रिपब्लिकन के दबदबे वाली यूएस कांग्रेस. दूसरी चुनौती है कोविड-19 महामारी को क़ाबू में करना जिसपर क़ाबू पाने में ट्रंप विफल रहे हैं. तीसरी चुनौती है अमेरिका की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना.
आब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के स्टडीज़ विभाग के डायरेक्टर और किंग्स कॉलेज, लंदन में इंटरनेशनल रिलेशन के प्रोफ़ेसर हर्ष पंत भी इंद्राणी की बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "जो बाइडन के सामने चुनौती ये है कि अमेरिका के बदले 'राजनीतिक परिपेक्ष' में वो ख़ुद को कितना प्रासंगिक बनाए रख पाते हैं. ये 'राजनीतिक परिपेक्ष' घरेलू और वैश्विक दोनों हैं. ऐसे में ज़रूरी है कि बाइडेन आते ही दोनों परिपेक्ष में एक विस्तृत ख़ाका तैयार कर अपनी टीम के साथ साझा करें. और टीम आगे उसी का अनुसरण करेगी."हर्ष पंत कहते हैं, "यूएस कांग्रेस में डेमोक्रैट बहुत शक्तिशाली नहीं हैं. सीनेट में 50:50 का आँकड़ा रहने वाला है.
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