गुरुवार को किये गए पैकेज के ऐलान से पहले, पिछले नौ महीनों में दिए गए आर्थिक पैकेज में से सरकार 3.5 खरब डॉलर ख़र्च चुकी है. महामारी की रोकथाम और बड़े पैकेज के रोल आउट करने के बावजूद विकास दर कमज़ोर है और महामारी तेज़ी से फैल रही है. गुरुवार तक 3,75,000 अमेरिकी इस बीमारी से अपनी जान गंवा चुके हैं और हर दिन औसतन 4,000 लोग इसका शिकार हो रहे हैं.
पिछले साल दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद 21. 44 खरब डॉलर था लेकिन इसका राष्ट्रीय ऋण 27 खरब डॉलर था. अगर ये क़र्ज़ देश की 32 करोड़ आबादी में बाँट दिया जाए तो हर नागरिक के नाम 23,500 डॉलर का क़र्ज़ होगा. इसका अर्थ ये हुआ कि अमेरिका ने अगर अपनी पूरी अर्थव्यवस्था बेच दी, तब भी वो अपने पूरे क़र्ज़ को अदा नहीं कर पाएगा.अमेरिकी आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि देश के बढ़ते क़र्ज़ के लिए राष्ट्रपति ट्रंप ज़िम्मेदार हैं.
इस संकट की वजह थी ट्रंप द्वारा टैक्स में कटौती और सरकारी खर्च में रोक न लगाना, जैसा कि वॉशिंगटन पोस्ट अख़बार ने हाल में लिखा, "ट्रंप ने 2017 में टैक्स में भारी कटौती की और गंभीर खर्च पर कोई संयम नहीं बरता जिसके कारण राष्ट्रीय ऋण में ज़रुरत से ज़्यादा इज़ाफा हुआ." याद रहे कि ट्रंप ने कॉर्पोरेट टैक्स 35 प्रतिशत से घटाकर 21 प्रतिशत कर दिया था.
लेकिन अब कर्ज़ और अधिक बढे हैं, जैसा कि प्रो पुब्लिका के लेख में दावा किया गया, "हमारा राष्ट्रीय ऋण उस स्तर पर पहुंच गया है जो द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में था. याद रहे कि 75 साल पहले युद्ध के कारण कर्ज़ बढ़ा था, ट्रंप के दौर में कोई सैन्य अभियान नहीं शुरू किया गया.
बाइडेन के साथ भारतीय खडे़ होंगे.!!
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