West Bengal Chunav: एक खेमे में गुरु हैं तो दूसरे में शिष्या...बीजेपी के टिकट पर प्रफेसर गोबर्धन दास, CPM उम्मीदवार आइशी घोष

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एक खेमे में गुरु हैं तो दूसरे में शिष्या, बंगाल के रण में यह कैसी अनोखी जंग WestBengalElections

मौका कोई भी हो, जेएनयू की चर्चा न हो, ऐसा संभव नहीं होता। इस वक्त बंगाल के चुनाव में भी जेएनयू चर्चा का विषय बना हुआ है। एक तरफ जहां जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्षसीपीएम के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। तो वहीं दूसरी तरफ जेएनयू के प्रोफेसर गोबर्धन दास को बीजेपी ने टिकट दे दिया है, हालांकि दोनों की सीटें अलग-अलग हैं। लेकिन एक ही यूनिवर्सिटी के गुरु-शिष्य का बिल्कुल विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों से चुनाव लड़ना कौतूहल तो पैदा करता ही है। दोनों के बारे में बता रही हैंजवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर...

इसके बाद वह दिल्ली आ गए और जेएनयू में बायोटेक्नॉलजी से मास्टर्स करने के लिए एडमिशन लिया। गोबर्धन दास कहते हैं कि मैंने बचपन में ऐसे दिन भी देखें हैं जब खाना कम होता था तो परिवार में किसी के हिस्से थोड़ा चावल आता था तो किसी को बस उसका पानी पीकर रह जाना पड़ता था। पांच भाइयों में गोबर्धन दास सबसे बड़े हैं। पिता दूसरों के खेत में काम करते थे। 12वीं की पढ़ाई पूरी होने तक वह भी अपने भाइयों के साथ खेत में मजदूरी करते थे। घर पर एक गाय थी, जिसका दूध बेचकर कुछ पैसे मिल जाते थे। जब गोबर्धन दास को जेएनयू...

जेएनयू से मास्टर्स करने के बाद गोबर्धन दास ने चंडीगढ़ के इंस्टिट्यूट ऑफ माइक्रो बायोटेक्नॉलजी से पीएचडी की। करीब 12 साल अमेरिका में रहे। दो साल डर्बन की यूनिवर्सिटी में प्रफेसर रहे और 2014 से जेएनयू में प्रफेसर हैं। 54 साल के गोबर्धन दास को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। उनके करीब 100 रिसर्च पेपर पब्लिश हुए हैं। जब वह अमेरिका या अन्य देशों में थे तब भी हर साल गांव आते थे। उन्होंने अपनी सेविंग से गांव में राइस मिल लगाई और फिर धीरे-धीरे एग्रिकल्चर बेस्ड इंडस्ट्री बढ़ती...

बहरहाल, जेएनयू में स्टूडेंट्स पर हमले की उस घटना ने पूरे देश को सकते में डाल दिया था। फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण भी इसके बाद स्टूडेंट्स के सपोर्ट में जेएनयू पहुंचीं। आइशी का कहना है कि जेएनयू मेरे दिल और दिमाग में बसा रहेगा। जेएनयू से सीधे एक विधानसभा क्षेत्र की उम्मीदवार बन चुनावी राजनीति में आने पर आइशी का कहना है कि यह एक बड़ी जिम्मेदारी है लेकिन मेरी राजनीति में कोई बदलाव नहीं होगा। जेएनयू में हमने जिन मुद्दों पर लड़ाई लड़ी है यह चुनावी लड़ाई उससे अलग कुछ नहीं बल्कि उसी का विस्तार है।...

आइशी के पिता देवाशीष घोष भी सीपीएम से जुड़े हैं। वह सीपीएम की मजदूर शाखा सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियंस के साथ जुड़े हैं। वह दामोदर घाटी निगम में नौकरी करते हैं। आइशी की छोटी बहन दिल्ली के श्यामाप्रसाद मुखर्जी कॉलेज की स्टूडेंट हैं और ग्रेजुएशन कर रही हैं। आइशी कहती हैं कि पश्चिम बंगाल के युवा नौकरी और बेहतर जिंदगी की उम्मीद कर रहे हैं। युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए राज्य से बाहर का रुख करना पड़ रहा है। हमें ये हालात बदलने हैं।देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स,...

 

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