दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को उस जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया जिसमें एनसीईआरटी को अपनी कक्षा 12 की इतिहास की टेक्स्ट बुक से उन हिस्सों के हटाने की मांग की गई थी, जिसमें बताया गया है कि शाहजहाँ और औरंगजेब ने अपने शासनकाल में मंदिरों की मरम्मत के लिए दान दिया था.
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा कि खुद के"मेहनती और ईमानदार छात्र" होने का दावा करने वाले याचिकाकर्ता चाहते हैं कि अदालत उनके तरीके से मुगल शासकों की नीतियों की समीक्षा करे. आप कह रहे हैं कि आपको समस्या है कि शाहजहां और औरंगजेब की मंदिर मरम्मत आदि के लिए अनुदान देने के लिए ऐसी कोई नीति नहीं थी? ...
अदालत ने टिप्पणी की कि ये याचिका न्यायिक समय बर्बाद कर रही है और बाद में याचिकाकर्ता को बिना शर्त याचिका वापस लेने को भी कहा. याचिकाकर्ता संजीव विकल और दपिंदर सिंह विर्क ने दावा किया है कि एनसीईआरटी के पास छात्रों को सिखाई जा रही सामग्री के संबंध में कोई रिकॉर्ड या जानकारी नहीं है और मुगलों के कृत्यों को गलत तरीके से पेश किया गया है.
कोर्ट ने कहा- यह सर्वविदित तथ्य है कि अधिकांश मुगल सम्राटों ने हिंदू धर्म के लोगों से धार्मिक समारोह और तीर्थ यात्राओं के प्रदर्शन पर भारी कर वसूला था. यह कोई नई बात नहीं है कि मुगल बादशाहों ने भी गैर-मुस्लिम लोगों को इस्लामिक धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया था.
पता नहीं कैसे कैसे लोग हैं हमारे देश में मुगलों का महिमामंडन हटाने चले थे। लेकिन इस देश की खूबसूरती को कैसे हटाओगे जो हमारे देश के शान है । जैसे लाल किला, जिसपे हर 15अगस्त और 26 जनवरी को तिरंगा झंडा फहराया जाता है। ताज महल कुतुब मीनार वैसे बहुत सारे हैं। जो इस देश की शान है।
Bahut acha kiya court. ye jumla gang apne hisab se itihas ko dikhana chahte hain. aaj mughlo ka banaya imarto se desh ka shan hai. revenue ata hai usse.
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