उन्होंने बताया कि बायोमैटेरियल्स एंड टिश्यू इंजीनियरिंग लैबोरेटरी में रिसरचर्स ने मांस के उत्पादन के लिए एक नवीन तकनीक विकसित की है और उत्पादन के लिए पेटेंट कराया है जो कि पूरी तरह से प्राकृतिक है. मंडल ने कहा, ‘‘तैयार मांस उत्पाद का स्वाद कच्चे मांस जैसा ही रहेगा लेकिन इसमें उपभोक्ता की जरुरतों के मुताबिक पोषक तत्व होंगे. इसे तैयार करने के दौरान बाहरी रसायन जैसे हार्मोन, पशु सेरम, एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल वर्जित किया गया है, इसलिए यह मानकों के हिसाब से सुरक्षित है.
उन्होंने कहा कि जनसंख्या में तेज वृद्धि के चलते मांस उद्योग खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी दवाब का सामना कर रहा है. मंडल ने संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या संभावनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि 2050 तक वर्तमान मांस उद्योग वैश्चिक जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएगा. उन्होंने कहा कि एक किलोग्राम चिकन मांस का उत्पादन करने के लिए लगभग 4,000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है और एक किलोग्राम मटन का उत्पादन करने के लिए 8,000 लीटर से अधिक पानी की आवश्यकता होती है.
मंडल ने कहा कि दुनिया में परिवहन से कुल मिलाकर जितनी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है उससे अधिक बेकार पानी और अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पशुपालन उद्योग से होता है. इसके अलावा, मांस के लिए हर साल अरबों जानवरों को मार दिया जाता है. ऊष्मा को बिजली में बदलने की तकनीक विकसित कर रहा आईआईटी-मंडी
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