बना भी नहीं था तब टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में ऊपर दी गई लाइनें छपी थीं। इस रिपोर्ट में बॉम्बे के पास ट्रॉम्बे में आम के बगीचों की तबाही को विस्तार से बताया गया है। यह रिपोर्ट याद दिलाती है कि टिड्डयों का हमला कितना भयानक हो सकता है। मौजूदा वक्त में पाकिस्तान और भारत दोनों के पंजाब प्रांत में एक बार फिर टिड्डयों की यह पुरानी महामारी देखी जा रही है। ऐसा लगता है कि एक बार फिर टिड्डयों के दल ने दस्तक दे दी...
टिड्डियों के इन हमलों के बारे में बाइबल में बताया गया है। मिस्त्र में टिड्डयों के इन हमलों ने महामारी का रूप ले लिया था।1929 में टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया था कि कुछ जिलों में इन टिड्डियों को 'महादेव के घोड़े' मान लिया गया। इसके चलते उन्हें जिंदा पकड़ा गया, उन्हें बहुत सम्मान दिया गया, खाना खिलाया गया और उनकी पूजा तक की गई। लोगों का मानना था कि अगर भगवान का कोप शांत हो जाता है और उनके घोड़ों की भूख मिट जाएगी तो टिड्डयों के दलों को वापस चले जाने का आदेश मिल...
1929 में टिड्डयों को नियंत्रित करने के लिए एयरक्रफ्ट के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया लेकिन फिर इस विचार को त्याग दिया गया। ऐसा करने से पायलट्स की जान को खतरा था क्योंकि इन टिड्ड्यों के इंजन में घुसकर उसे ब्लॉक करने का डर था। एक संवाददाता ने स्वीकार किया था कि एक दूसरा सलूशन है- तारों से जकड़ी हुई स्क्रीन, जिन्हें देखने सेघी के साथ टिड्डी रोस्ट
कीटविज्ञानियों के लिए यह रहस्यमयी बात थी कि अचानक से टिड्डयों के झुंड कैसे वुकल आए। रूसी कीटविज्ञानी सर बोरिस यूवारोव ने 1921 में एक महत्वपूर्ण कनेक्शन बताया। टिड्डियां और झींगुर एक ही प्रजाति के थे लेकिन सूखे और खाने की कमी के चलते झींगुर ने जो अंडे दिये उनसे टिड्डियां बन गईं। ये टिड्डियां झुंड में आतीं और खाने की तलाश में दूर तक उड़ सकती थीं। इससे ये फायदा हुआ कि टिड्डयों को कंट्रोल करने में मदद मिली क्योंकि फील्ड वर्कर्स अब उन स्थितियों का पता लगा सकते थे जब झींगुर तनाव में होते और वे...
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