धारा 370 हटने के बाद राज्य में पहली बार हुए थे चुनाव
जम्मू-कश्मीर जिला विकास परिषद इलेक्शन के रिजल्ट के राजनैतिक मायने क्या हैं. चुनाव के नतीजों से जम्मू-कश्मीर का जो राजनीतिक परिदृश्य उभरता है उसे समझना जरूरी है. इस सिलसिले में सबसे पहले तीन सवालों को समझना जरूरी है. ये सवाल है कि क्या इस चुनाव के नतीजे अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले पर रेफरेंडम है? क्या नतीजे ये बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर को 'गुपकार' कुबूल है? क्या BJP जम्मू-कश्मीर में वैकल्पिक ताकत के रूप में उभर रही है?
बता दें कि आठ चरणों में हुए इस चुनाव में लड़ाई सिर्फ सियासत की नहीं थी. लड़ाई जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े मुद्दे की थी. बम, बारूद और गोली से दूर फ्री एंड फेयर इलेक्शन की थी. ये चुनावी लड़ाई बीजेपी और जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा की पार्टियों के बीच सीधी टक्कर की थी. चुनाव नतीजों के आने के साथ ही इन सवालों का स्पष्ट जवाब जम्मू-कश्मीर की जनता दे दिया है.अनुच्छेद 370 और 35 ए खत्म होने के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर में हुए इस चुनाव के परिणामों से जो सियासी तस्वीर उभरी है.
उमर अब्दुल्ला ने तो यहां तक कह दिया कि अब अनुच्छेद 370 की बहाली को संघर्ष करने के लिए उनके पास जनादेश है.इस चुनाव में इस बार बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है. बीजेपी का दावा है कि ये उम्मीदवार उसके साथ हैं. हालांकि पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि बीजेपी ऐसा कहकर निर्दलीय उम्मीदवारों को खरीदना चाह रही है.डीडीसी चुनाव का एक संदेश हमारे पड़ोसी पाकिस्तान को भी है. पाकिस्तान ने इन चुनावों को डाउन प्ले करने, हिंसा भड़काने, आतंकी गतिविधियों को बढ़ाने समेत कई हरकतें कीं.
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