उपचुनाव से तय होगा कांग्रेस-आरजेडी रिश्ताबिहार विधानसभा की दो सीटों तारापुर और कुशेश्वरस्थान पर हुए उपचुनाव के नतीजे आने वाले हैं. उपचुनाव में हार जीत किसी की हो, उसका सरकार पर तुरंत तो कोई प्रभाव तो नहीं पड़ने वाला, लेकिन भविष्य की राजनीति में इसकी भूमिका अहम होगी. नतीजे बिहार में कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन का भविष्य तय करेंगे तो जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह के लिए भी किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होंगे.जमुई जिले की तारापुर सीट पर आरजेडी ने पहली बार यादव या कुशवाहा समाज से हटकर वैश्य कार्ड खेला है.
कुशेश्वरस्थान सीट पर आरजेडी ने गणेश भारती को उतारा है तो कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता अशोक राम के बेटे अतिरेक कुमार को प्रत्याशी बनाया है. वहीं, जेडीयू ने शशि भूषण हजारी के बेटे अमन भूषण हज़ारी को मैदान में उतारा है. एलजेपी से अंजू देवी मैदान में हैं.बता दें कि तारापुर से जेडीयू विधायक और पूर्व मंत्री मेवालाल चौधरी की मृत्यु कोरोना संक्रमण से हुई थी तो कुशेश्वर स्थान की सीट वहां के जेडीयू विधायक शशि भूषण हजारी की मौत से खाली हुई. ऐसे में तारापुर और कुशेश्वरस्थान सीट पर 30 अक्टूबर को मतदान हुआ था.
तारापुर में कुल 51.87 फीसदी मतदान हुआ है जबकि कुशेश्वरस्थान सीट पर 49 फीसदी लोगों ने वोट डाले थे. एनडीए एकजुट होकर जेडीयू के साथ खड़ा था तो महागठबंधन के दोनों बड़े दल आरजेडी और कांग्रेस दोनों सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ उतरे हैं. यही वजह है कि सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.उपचुनाव के नतीजे कांग्रेस और आरजेडी के गठबंधन का भविष्य तय करेगा, क्योंकि दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ मौदान में है. कांग्रेस जहां आरजेडी को बिहार में अपना सियासी महत्व दर्शाना चाहती है.
कांग्रेस इस उपचुनाव के जरिए आरजेडी को यह संदेश देना चाह रही है कि उसे कोई हल्के में न ले. कांग्रेस अपने कार्यकर्ता को बताना चाह रही है कि पार्टी का वजूद बिहार में अभी भी है, सिर्फ संघर्ष करने की आवश्यकता है. पार्टी यह भी बताना चाह रही है कि वह आरजेडी की पिछलग्गू नहीं है. चुनाव जीतकर कांग्रेस महागठबंधन में अपनी पॉलिटिकल बारगेनिंग पावर को बढ़ाना चाहती है. इसीलिए तमाम कांग्रेसी नेताओं ने खुलकर आरजेडी पर हमले किए हैं.
बिहार में चार-चार विधायकों वाली जीतन राम मांझी की HAM और मुकेश सहनी की वीआईपी का सियासी अहमियत बढ़ जाएगी. एनडीए में से एक भी सहयोगी इधर से ऊधर होता है तो नीतीश सरकार के लिए चुनौती बढ़ सकती. ऐसे में अगर परिणाम एनडीए के पक्ष में रहा तो सरकार की स्थिरता तो बढ़ेगी ही विपक्ष को भी नये सिरे से अपनी रणनीति तैयार करनी हैं. बिहार की राजनीति किस ओर करवट लेगी, उस पर राजनीतिक प्रेक्षकों की पैनी नजर रहेगी.
शायद ये दोनों ही राजनीति से बाहर हो जायेंगे
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