Ayodhya Verdict: क्या हैं अयोध्या पर दिए गए फैसले के कानूनी मायने?

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अयोध्या की विवादित जमीन के फैसले को राष्ट्रीय संदर्भ में कैसे देखा जाएगा, समीक्षा कर रहे हैं सुप्रीम कोर्ट के वकील viraggupta

अयोध्या की विवादित जमीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन पर मंदिर बनाए जाने का रास्ता साफ कर दिया है. मंदिर निर्माण के लिए जमीन रामलला विराजमान को देते हुए कोर्ट ने सरकार को तीन महीने में ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है. लेकिन सवाल ये है कि इस फैसले के कानूनी मायने क्या हैं?

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश के सबसे बड़े और चर्चित मुकदमे का अंत होना चाहिए, लेकिन इस फैसले के बाद दूसरे पक्षों द्वारा पुनरावलोकन या फिर क्यूरेटिव पिटिशन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन पांच जजों द्वारा सहमति से दिए गए इस फैसले के बाद अब इसमें किसी बदलाव की गुंजाइश कम है. इस फैसले में अनेक अहम बातें कही गई हैं. विवादित स्थान पर परंपरा के आधार पर राम जन्मभूमि की मान्यता को पुरातत्व विभाग की खुदाई के प्रमाणों के आधार पर कानूनी मान्यता दी गई है.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अयोध्या के 1993 कानून के तहत ट्रस्ट बनाने और जमीन सौंपने के लिए निर्देश दिए हैं. तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने हलफनामा देकर कहा था कि यदि पुरातत्व विभाग की खुदाई से मंदिर के पक्ष में प्रमाण मिले तो फिर मंदिर हेतु जमीन दी जा सकती है, जिसके लिए अयोध्या कानून की धारा 6 में प्रावधान हैं. थिंक टैंक सीएएससी द्वारा प्रकाशित मेरी पुस्तक 'Ayodhya Ram temple in Courts' में इस बात विस्तार से बताया गया है.

राममंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक सुखद निर्णय हैं. इस फैसले के अनेक एवं निष्कर्ष भी हैं जो आने वाले समय में न्यायिक सुधारों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं. यह मामला पिछली दो शताब्दियों से प्रशासन और अदालतों के समक्ष विवादों से घिरा है. सुप्रीम कोर्ट में भी यह मामला नौ वर्षों से लंबित था. वर्तमान चीफ जस्टिस गोगोई ने दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए इतने पुराने मामले को दो महीने में निपटा कर एक बड़ी मिसाल कायम की है.

(विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. विराग गुप्ता ने कानूनी आधार पर इस फैसले का विश्लेषण किया है.

 

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viraggupta Sab khus hain.bjp ki chabbi sudhregi.

viraggupta किसी भी प्रकार की समीक्षा की जरूरत ही नहीं रही सुप्रीम कोर्ट के पंच परमेश्वर का निर्णय स्वयं में ही एक सम्पूर्ण समीक्षा है।

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