250 साल पहले हुआ फ्रैंको-प्रशियन वॉर भाषा की अहमियत को बताता है, हिंदी दिवस के दिन हमें इस कहानी को जरूर पढ़ना चाहिए

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आखिरी सबक: 250 साल पहले हुआ फ्रैंको-प्रशियन वॉर भाषा की अहमियत को बताता है, हिंदी दिवस के दिन हमें इस कहानी को जरूर पढ़ना चाहिए HindiDiwas2020 HindiDiwas हिंदी_दिवस

दुश्मन सेना फ्रांस के स्कूली छात्रों और गांवों के लोगों को अपनी भाषा सिखाना चाह रही थी, पर लोग भाषा खोने के डर से आंसू बहा रहे थे

फ्रांस के अल्सेश और लाॅरेन जिले प्रशिया के हाथ में आ गए थे। दुश्मन सेना यहां के स्कूली छात्रों और गांव के लोगों को अपनी भाषा सिखाना चाह रहे थे, और लोग अपनी भाषा को खोने के डर से आंसू बहा रहे थे। इस कहानी को लिखा है फ्रेंच उपन्‍यासकार और कथाकार अल्फाॅज डाॅडे ने। कहानी का नाम द लास्ट लेसन है, यानी आखिरी सबक।प्रोफेसर नवीन कानगो

आमतौर पर स्कूल की शुरुआत गली तक सुनाई देने वाले कानफोड़ू सामूहिक पाठ, शोर-शराबे, मेजों का खुलने-बंद होने और शिक्षक के बेंत की मेज पर खटर-पटर से होती थी। पर आज सब कुछ शांत और स्तब्ध था। मैं चुपचाप अपनी डेस्क तक पहुंचने की फिराक में था। मैं इन हालात पर विचार कर ही रहा था कि मिस्टर हैमेल अपनी कुर्सी पर बैठ गए और उसी उदास और मृदु लहजे में, जैसे उन्होंने मुझसे बात की थी। बोले, ‘‘मेरे बच्चों, आज मैं तुम्हें आखिरी सबक पढ़ाने वाला हूं। बर्लिन से जारी आदेश के तहत अब अल्सेश और लाॅरेन के स्कूलों में सिर्फ जर्मन पढ़ाई जाएगी। नया शिक्षक कल पहुंच जाएगा। यह आपका आखिरी फ्रेंच अभ्यास है। मैं चाहता हूं कि आप बहुत ध्यान दें।’’ओह, कितना दुर्भाग्यपूर्ण! तो टाउन हाॅल में उन्होंने यही सब लगा रखा...

तभी ‘‘मैं तुम्हें नहीं डांटूंगा’’- मैंने मिस्टर हैमेल को कहते सुना। ‘‘छोटे फ्रांज, तुम्हें खुद ही बुरा लगना चाहिए। देखो ऐसा है! हम रोज ही अपने आपसे कहते हैं- अरे; अभी बहुत समय पड़ा है, इसे मैं कल सीख लूंगा और अब तुम देखो, हम कहां हैं। आह! ’’

 

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