भारतीय इतिहास के कैलेंडर में 1971 के नाम कई बड़ी जीतें दर्ज हुईं- राजनीति हो, चुनाव या फिर युद्ध- और भारत के लिए इन सबका दूरगामी असर होनेवाला था. भले ही भारत घरेलू मोर्चे पर कई समस्याओं से जूझ रहा था, लेकिन फिर भी देश एक नई उमंग का अनुभव कर रहा था.लेखों की एक श्रृंखला
कानपुर लौटने के कुछ दिन बाद मैं कोलकता गई. गर्मागर्म बहसों का माहौल था. माकपा राज्य सरकारों को ‘संघर्ष के हथियार’ के रूप में इस्तेमाल करने की अपनी नीति को लागू करने की कोशिश कर रही थी. मेरा सौभाग्य था कि मैं उसको देख सकी, उसमें भाग ले सकी. ब्रिगेड ग्राउंड को किस तरह गांव और शहर की गरीब जनता ने अपने लाल झंडों से एक लाल समंदर में बदल दिया, यह मेरे लिए एक अविस्मरणीय दृश्य था जिसकी कल्पना भी मैं इसके पहले कभी कर नहीं पाई थी.
उन्होंने मुझे कानपुर के मजदूर वर्ग की दुनिया से मिलाया. वे मुझे मिलों के फाटक पर होने वाली सभाओं में ले जाते थे. सभा खत्म होने पर मैं भी उनके साथ उन चाय की गुमटियों पर बैठती थी जो हर मिल के फाटक के इर्द-गिर्द बने हुए थे. इनमें यूनियन के नेताओं, जुझारू और साधारण मजदूरों से बात करने का मौका मिलता था. मेरे जैसी जिद्दी और बहस करने वाली युवती के साथ लंबी बातचीत करने में कॉ. ईएमएस ने परहेज नहीं किया. उन्होंने मुझसे कहा भी कि पार्टी की सदस्यता ले लो. मेरी ‘आज़ादी खत्म हो जाने’ वाले मेरे बहुत घिसे-पिटे बहाने का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा, ‘तुम जब चाहो, छोड़ भी सकती हो. विवाह की तरह नहीं है.’ और उनके कानपुर छोड़ने से पहले मैंने पार्टी का फॉर्म भर दिया.
रोज़ विभिन्न मिलों के मजदूरों का एक जत्था गिरफ्तारी देने लगा. एक अनूठा फैसला भी लिया गया: मिल के मजदूरों के घरों की महिलाओं का एक जत्था भी गिरफ्तारी देगा. मुझे इसे संगठित करने की ज़िम्मेदारी दी गई. आखिरकार, विभिन्न उम्र की 50 से अधिक महिलाएं जेल जाने के लिए तैयार हो गईं. विक्टोरिया के गेट से ज़िला कचहरी तक का हमारा जुलूस देखने वाला था. हजारों लोग उसे देखने इकठ्ठा हो गए. कुछ समर्थन मे तो कुछ हैरत से ताकने के लिए!हम लोगों को एक हफ्ते तक जेल मे रहने की सज़ा सुनाई गई और फिर हमारे आंदोलन के पक्ष में तमाम यूनियनें और अन्य संगठन खड़े हो गए. उस समय चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री थे.
उसी साल की तीसरी हड़ताल जेके जूट मिल की थी. पश्चिम बंगाल के जूट के मजदूरों ने 30 रुपये मासिक की बढ़ोतरी हासिल की थी- यह उनके इतिहास में सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी! इन हड़तालों के दौरान पुलिस और प्रशासन का जो मैंने पक्षपातपूर्ण ही नहीं बल्कि बिल्कुल एक खेमे की जमकर सुरक्षा करने का रवैया देखा, उसने मेरे लिए वर्गीय दृष्टिकोण और वर्गीय शासन की सच्चाई को प्रमाणित कर दिया.
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