after 10 years of bonded labour kaasi struggles to get a certificate from govtस्थानीय प्रशासन बंधुआ मजूदरों से ऐसे दस्तावेज मांग रहा है जिनसे साबित को कि वे बंधुआ मजूदरी कर रहे थे। इसके बाद ही इन रिहा हुए लोगों को प्रमाणपत्र मिल पाएंगे जो उन्हें सरकार से वित्तीय मदद दिलाने के लिए जरूरी हैं।काशी अपनी पत्नी और बाकी के परिवार के साथ झोंपड़ी में रह रहे हैंकाशी भूल गए हैं कि सीधे कैसे खड़ा हुआ जाता है, एक दशक तक बंधुआ मजदूरी की बेड़ियों में जकड़े रहने के बाद हड्डियां जैसे मुड़ गई...
काशी की एक फोटो सामने आई थी जिसमें वह अधिकारियों के सामने जमीन पर सिर टेक कर गुलामी से आजाद कराने की गुहार लगा रहे थे इन्हें कांचीपुरम और रानीपेट जिलों से आजाद कराया गया, हालांकि असलियत यह है कि सही मायनों में काशी आज भी आजाद नहीं हुए हैंकाशी भूल गए हैं कि सीधे कैसे खड़ा हुआ जाता है। एक दशक तक बंधुआ मजदूरी की बेड़ियों में जकड़े रहने के बाद उनकी हड्डियां ही जैसे मुड़ गई हैं। उनकी झुकी कमर अब सीधी नहीं होती। पूरा देश वह दृश्य शायद कभी भूल नहीं पाएगा, जब 11 जुलाई को काशी की एक फोटो सामने आई थी जिसमें वह अधिकारियों के सामने जमीन पर सिर टेक कर खुद को और अपने परिवार को वर्षों की इस गुलामी से आजाद कराने की गुहार...
बंधुआ मजदूरी प्रथा अधिनियम 1976 के अनुसार रिहा हुए लोगों की पहचान, राहत और पुनर्वास की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन पर है। इस सर्टिफिकेट से उन्हें सरकार की ओर से दो लाख रुपयों की वित्तीय मदद मिलने में आसानी होगी।वाडिवेल का कहते हैं, 'सर्वनन को ऐसे दस्तावेज चाहिए जो यह साबित करते हों कि यह 'बंधुआ मजदूरी' का मामला है। अब इनसे बंधुआ मजदूरी करवाने वाला भला अपने दस्तावेज सरकार को क्यों देगा? ' इससे पहले हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए सर्वनन ने कहा था कि काशी...
वकील डेविड सुंदर सिंह कहते हैं, 'इनके पास कोई कागज नहीं है यह स्थिति इन लोगों के लिए ठीक नहीं है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार इनके मामले में दोनों पक्षों की सुनवाई की जरूरत नहीं है केवल बंधुआ मजदूर की शिकायत ही जांच के लिए काफी है। लेकिन इस मामले में कानून का पालन नहीं हुआ है।'
God bless u Kashi
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