'हैदराबाद से गोरखपुर के लिए 73 हजार रुपये में एम्बुलेंस ली थी, पर भाई पहुंचने से पहले ही चल बसे'

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‘हैदराबाद से गोरखपुर के लिए 73 हजार रुपये में एम्बुलेंस ली थी, पर भाई पहुंचने से पहले ही चल बसे’ Lockdown MigrantCrisis MigrantWorkers लॉकडाउन प्रवासीसंकट प्रवासीमजदूर

‘मेरे भाई हैदराबाद में पेंट पॉलिश करते थे. मै भी उनके साथ रहते हुए मजदूरी करता था. दो हफ्ते पहले वह बीमार हुए. मै उन्हें लेकर आधा दर्जन अस्पताल में घूमता रहा, सभी दवा दे देते लेकिन भर्ती नहीं करते. आखिर में मुझसे कहा गया कि भाई कुछ दिन के ही मेहमान है, घर ले जाओ. गांव में जमीन रेहन रखकर पैसा मंगाया. हैदराबाद से गोरखपुर के लिए 73 हजार रुपये में एम्बुलेंस ठीक किया और भाई को लेकर चल दिया लेकिन गांव से 25 किलोमीटर पहले ही मेरे भाई की जान चली गई. एम्बुलेंस में मेरी आंखों के सामने मेरा भाई मर गया.

राजेंद्र निषाद डेढ़ दशक से हैदराबाद में श्रीरामनगर क्षेत्र में मजदूरी कर जीवन निर्वाह कर रहे थे. धर्मेंद्र भी आठ वर्ष पहले उनके साथ हैदराबाद चला गया और मजदूरी करने लगा. दोनों वहां पेंट-पॉलिश का काम करते थे. मंझला भाई 27 वर्षीय जोगेंद्र विजयवाड़ा में बढ़ई का काम करते हैं. धर्मेंद्र 18 अप्रैल को राजेंद्र को लेकर गर्वनमेंट जनरल एंड चेस्ट हास्पिटल में गए जहां उन्हें तीन दिन तक भर्ती रखा गया. यहीं पर उनकी कोविड-19 की जांच भी करवाई गई.

उन्होंने बताया कि गांव से मंगाए पैसे भी खर्च हो गए. जब डॉक्टरों ने कहा कि राजेंद्र ज्यादा दिन नहीं बचेंगे तब वह हिम्मत हार गए और घर फोन कर इस बात की जानकारी दी. उधर धर्मेंद्र नौसढ़ से कुछ आगे बढ़े ही थे कि राजेंद्र ने दम तोड़ दिया. बीआरडी मेडिकल कॉलेज पहुंच धर्मेंद्र की भाभी और बहन को किसी तरह एम्बुलेंस में बिठा वे लोग वे लोग गांव के लिए निकले.

 

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बहुत सी कहानियाँ है दुख होता है की हमारा चौकीदार ही इनकी मौत का जिम्मेदार है । आकस्मिक लाकडाऊन आकस्मिक मौत बनकर लोगो को खा गया ।

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