बीते रविवार से दिल्ली में शुरू हुए दंगे की आग में अब तक 40 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 300 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं. इस दौरान राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्रालय से लेकर दिल्ली पुलिस तक पूरा प्रशासनिक महकमा मूकदर्शक बना रहा. दंगा रोकने में नाकाम रही दिल्ली पुलिस पिछले कुछ समय से अपनी कार्यप्रणाली को लेकर लगातार सवालों के घेरे में है.
पिछले तीन-चार महीनों की घटनाएं इसका सबूत हैं कि गृह मंत्रालय ही दिल्ली चला रहा था. दिल्ली के नेता पुलिस कमिश्नर नहीं थे बल्कि नॉर्थ ब्लॉक में बैठे लोग थे. पहले जामिया में एक घटना हुई. वहां पुलिस ने अति सक्रियता दिखाई और कई बिंदुओं पर ऐसा लगा था कि नियम-कानून की धज्जियां उड़ाई गईं. साफ था कि पूरी स्थिति को सांप्रदायिक करने के लिए शाहीन बाग का इस्तेमाल किया जा रहा था. उसका फायदा भाजपा को हुआ. उसका वोट प्रतिशत कुछ बढ़ गया और कुछ ज्यादा विधायक जीत गए लेकिन उतना फायदा नहीं हुआ, जितना ये देख रहे थे.
किसी भी बंदोबस्त में लगने के दौरान पुलिस को अपनी फोर्स रिजर्व भी रखनी चाहिए. दंगे की जगह अगर भूकंप आ जाता, आग लग जाती या रेल दुर्घटना हो जाती तो आपको उसके लिए इंतजाम रखना चाहिए था लेकिन उसके लिए दिल्ली पुलिस नहीं तैयार थी. सके बाद एक ऐसा बिंदु आता, जिसमें एक चिंगारी आग लगा सकती थी और ऐसा मौका आया जिसमें जाफराबाद में महिलाओं ने सड़क रोक दी और मेट्रो बंद कर दिया और कपिल मिश्रा ने आकर धमकी दी कि तीन दिन तक हम इंतजार करेंगे और फिर आकर आपको हटा देंगे. इसके बाद जरा-सी उत्तेजना से दंगे हो सकते थे और दंगे हुए, इसलिए कह सकते हैं कि सरकार में बैठे लोगों ने सांप्रदायिक माहौल बनाकर ऐसे बिंदु तक पहुंचा दिया.
आपके अंदर राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति भड़काऊ भाषण करेगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी और कानून के अंदर इसके लिए प्रावधान हैं. अगर एनएसए जाते हैं और खुद एक डीसीपी के दफ्तर में बैठते हैं तो इसका क्या संदेश जाएगा? आपने एक खराब पुलिस कमिश्नर लगाया था और यह आपकी जिम्मेदारी है. उन्हें हटाकर आपको एक अच्छा नेतृत्व देना चाहिए था. सही फैसले लेने के लिए आपको विभिन्न कमांड यूनिट को प्रोत्साहित करना चाहिए था ताकि वे दंगे रोक सकें.
आजादी के बाद तो पुलिस को अपनी औपनिवेशिक मानसिकता बदलने की जरूरत है. उसको जनता के मित्र की तरह सामने आने की जरूरत है. पुलिस के पास संसाधनों की कमी नहीं है. मेरा मानना है कि जो लोग संसाधनों का रोना रोते हैं, वे गलत हैं. 1947 के बाद जितने हुक्मरान आए हैं उन्होंने उसी ढांचे को बनाए रखा जिसे अंग्रेज बहादुर खड़ा करके गए थे. एक मुख्यमंत्री को उसी तरह का दगोगा पसंद आता है जो उसके विरोधियों की टांग तोड़ दे, जो उसके समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई न करे.
सरकार मे तो कॉंग्रेस, आम आदमी पार्टी भी है
हम तो देखे तो तुम जेसो ने तोहिनबाग जाकर जो उकसाया उससे हुए
सरकार में बैठे लोगों ने सांप्रदायिक माहौल बनाकर कराए दंगे' तो किया क्यु? किसी ने कहा पत्थर मारो/खाओ तो आप चल दिये मारने/खाने कुछ तो दिमाग लगाते
All political leaders are responsible for DelhiRiots
सोशल मीडिया ने सारे नकाब उतार दिए है अब सोशल मीडिया पर सिकंजा कसने ki तैयारी
अमातुल्लाह, ताहिर हुसैन, इशरत,शरजील, उमर खालिद और सारा टुकड़े-टुकड़े गैंग ने दिल्ली को जलाया।
द वायर व दंगाइयों की अच्छी केमिस्ट्री है,उसे दंगो की असलियत मालूम है,कि दिल्ली सरकार में बैठे लोगों ने ही दंगे कराये थे, पूरे देश को पहले ही खेजरीबाल व उस की जेहादी गेंग का सच मालूम था।
Logo ki jane gaye kai hazar cr ka nuksaan hua ek pede piche chale gaye democracy barbaad hai
एक सच जिसे ढांपने के लिए कुछ देशद्रोही मीडिया ने सरकार का पूरा साथ दिया, किसी एक का हाथ नहीं दिल्ली की मासूम जनता की मौत में, यहां सरकार और सरकार के सारे समर्थक के हाथ लाल हैं।
Absolutely right sir.
मुझे तो लगता है ये आप लोगों का काम है
Tahir Hussain ne danga se pahle Amanutullah Khan, Manish Sisodiya aur Arvind Kejriwal se lagatar mobile se sampark sadhe huye tha, unlogon ki baatchit ka vivran desh ke saamne laya jaye, pure shadyantra ka khulasa ho jayega.
दंगों के लिये मुहम्मद की सोच जिम्मेदार है
ईस देश का गृहमंत्री स्वयम दंगे प्रायोजित कराने के कारण तडीपार हो गया था!
आम आदमी पार्टी की अकर्मण्यता के कारण दिल्ली में दंगे हुए।
DelhiViolance तेरे वायर जब तक नहीं कटेंगे, तब तक झूठ फैलाना बंद नहीं करेगा। तेरे खून में ही दोगलापन है या फिर किसी से पैसे ले रखे हैं झूठ फैलाने के।
Aap ne Karaya, SHAHINBAG aur Dange
Tum sab thonke jaoge
The कायर ok
सिर्फ आपके ब्लॉगर SharjeelImam ने शांति का पस्त पढ़ाया और दिल्ली में प्रैक्टिकल किया!!!😢
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