'बिन जिया जीवन' समकालीन चिंताओं और संवेदनाओं की पुरानी अभिव्यक्ति है

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'बिन जिया जीवन' समकालीन चिंताओं और संवेदनाओं की पुरानी अभिव्यक्ति है कुलदीपकुमार बिनजियाजीवन हिंदीसाहित्य KuldeepKumar BinJiyaJeevan HindiLiterature

कुलदीप कुमार की कविताएं पिछले तीन दशकों में हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में आती रही हैं, पत्रकार की हैसियत से वे साहित्य-संस्कृति की जानी-मानी शख्सियतों से बातचीत करते रहे हैं. ऐसे अदीब से यह उम्मीद रहती है कि अपनी मौलिक रचनाओं में वे नई अंतर्दृष्टि की तलाश करेंगे. हाल ही में प्रकाशित उनके संग्रह ‘बिन जिया जीवन’ में सादगी के साथ इस उम्मीद को पूरा करने की कोशिश है.

संग्रह में कुल 64 कविताएं हैं. कुछ कविताएं बड़ी शख्सियतों, जैसे ओक्तावियो पाज़, मल्लिकार्जुन मंसूर आदि से प्रेरित हैं. संग्रह की सबसे सुंदर और मन को छू लेने वाली कविताएं वे हैं, जहां कवि निजी स्मृतियों और व्यथाओं को कहता है. जाहिर है कि कवि किसी और पर टिप्पणी करते हुए खुद और समकालीन कला के जीवन पर भी कह रहा होता है. इस कविता के बरक्स ओक्तावियो पाज़ पर लिखी कविता के कथ्य में लक्षणा का अतिरेक है, जो बचकानी कोशिश में सिमट कर रह गया है – ‘पास बोले मैं पास हूं/ और चूंकि पास हूं/ तो जनाब फिर मैं आपसे मिलूं तो क्यों कर?’ संगीतकारों से कवि काफी प्रभावित लगता है, और यह बात छत्तीस लाइनों की कविता ‘रागदर्शन’ में नौ संगीतकारों और दस रागों के उल्लेख से साफ दिखती है.

हर दिन जीवन में उपस्थित किसी के अचानक चले जाने और आखिर में कुछ न रहने का आतंक यहां दार्शनिक उलझन बन कर आते हैं, जिनमें पीड़ा है, पर हम इस एहसास को और जानना-सोचना चाहते हैं. सत्य प्रकांड खालीपन लिए सामने आ खड़ा होता है. तक़रीबन सभी कविताओं में तरक्कीपसंद वैचारिक प्रवाह है. ‘दहशत’ कविता में बड़ी साफगोई के साथ वे गोरक्षकों के खिलाफ सोच्चार होते हैं. इसी तरह ‘चौकीदार की चिंता’ में अपनी पक्षधरता को साफ लहजे में सामने रखते हैं. आज जब हिंदी पत्रकारिता पर ‘गोदी मीडिया’ जैसे इल्ज़ाम आम हैं, पत्रकारिता से आए कवि कुलदीप की यह साफगोई काबिले-तारीफ है.

मसलन संग्रह की आखिरी पंक्तियों में द्रौपदी कहती है- ‘अब हिमालय मुझे अपनी गोद में ले ले/ तो मेरी यात्रा पूरी हो/ अग्निकुंड से हिमशिखर तक की/ अर्थहीन यात्रा…’ इसी तरह ‘माद्री’ कविता में आखिर में माद्री कहती है ‘लेकिन प्रारब्ध से कौन बच सका है/ जो मैं बचूंगी/ विदा.’

 

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