'जम्मू कश्मीर की मीडिया को खुद नहीं पता कि राज्य में क्या हो रहा है'

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साक्षात्कार: जम्मू कश्मीर में मीडिया की स्वतंत्रता को बहाल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन से विशाल जायसवाल की बातचीत.

जम्मू कश्मीर में मीडिया की स्वतंत्रता को बहाल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन से विशाल जायसवाल की बातचीत.केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति के आदेश से 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने से एक दिन पहले 4 अगस्त से ही राज्य में मोबाइल, लैंडलाइन और इंटरनेट सहित संचार के सभी संसाधनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था.

अनुच्छेद 370 को हटाया जाना बहुत ही चौंकाने वाला था. यह जम्मू कश्मीर और भारत के बीच में एक कानूनी ही नहीं बल्कि राजनीतिक और भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था. एक मात्र भावनात्मक लिंक वही रह गया था. इतने बड़े इलाके वाले राज्य का संचालन क्या एक केंद्रशासित प्रदेश के रूप में हो सकता है. इस पर सोचने की जरूरत है. इसमें एक राजनीतिक प्रभाव भी है. हालांकि, यह तो प्रतिबंधों में ढील देने के बाद ही पता चलेगा कि इसको लेकर लोगों की कितनी सहमति है.

इन भूमि सुधार ने सामाजिक और आर्थिक असमानता को काफी हद तक कम किया. मतलब असमानता तो है लेकिन राष्ट्रीय स्तर से तुलना करें तो यहां की असमानती इतनी भीषण नहीं है. हमने यहां पर कभी नहीं सुना कि लोग भूख से मरते हैं. लोगों के पास अपनी जमीन है वे अपना खाना उगा सकते हैं. जम्मू कश्मीर को लंबे समय से बंद जैसी चुनौतियां का सामना करना पड़ता रहा है. पहले की तुलना में इस बार का बंद किस तरह से अलग है?

ये इलाके पिछड़े हैं और ये इसलिए भी नजरअंदाज हो गए क्योंकि घाटी में कम से कम कुछ मीडिया टीम जा रही हैं और पूरी घाटी में तो नहीं, कम से कम श्रीनगर में तो रिपोर्ट कर रही हैं. इसके बाद 1965 में पाकिस्तान ने उन्ही की भावनाओं को भड़काकर मुजाहिद्दीन खड़े कर दिए और जिब्राल्टर के नाम से एक ऑपरेशन शुरू किया. वहां एक विद्रोह भी भड़का जिसके बाद भारत पाकिस्तान में एक युद्ध भी हुआ. वॉर के दौरान और उसके बाद सेना के द्वारा आम लोगों पर काफी जुल्म भी हुआ.

मैंने ऐसे बहुत से युवाओं से बात की, खासतौर पर दक्षिणी कश्मीर में जो बंदूक पकड़ना चाहते थे लेकिन बंदूक और पैसे की कमी उन्हें रोक रही थी. इस दौरान एक वैचारिक बदलाव भी नजर आ रहा था कि आजादी के बाद इस्लामिक जुड़ने लगा था. कुछ हालिया रिपोर्ट में ये बातें सामने आईं कि आईएसआईएस की विचारधारा की तरफ भी उनका झुकाव हो रहा था. इन सब हालात को देखते हुए अगर पाकिस्तान उसका इस्तेमाल करता है तो यह खतरनाक और भयावह होगा.

अब हमारा वहां से कोई सीधा संपर्क नहीं रह गया है. अपने रिपोर्टर से नहीं है, अपने सूत्रों से नहीं है, अपने खास लोगों से नहीं है. हम पूरी तरह से दिल्ली और विदेशी मीडिया में जो कुछ छप रहा है, उस पर निर्भर हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि लोगों की आवाज बाहर नहीं आ पा रही है. जो आवाजें बाहर आ पा रही हैं, वो मीडिया के कुछ गैंग के माध्यम से सामने आ रही हैं. उनमें से भी अधिक पैराशूट पत्रकार हैं जो चॉपर से आ रहे हैं.

 

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JANUBHUJAN वही मिडीया वाले थे बाकी के सारे कहा है

Media to ghulaam ha ji dekh kr v ankh band

सारा बात the wire ko hi pata hai

Jammoo kashmir is well known to every thing that every thing is normal there but try to understand?

और कुछ लिखना बाकी है तो उसे भी लिख दो..

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