शरीर का बूढ़ा होना हमने बहुत सुना है लेकिन क्या मन भी बूढ़ा होता है! मन भी तन की तरह कमजोर होने लगता है. नवीनता से डरने लगता है. छोटी जकड़न को बड़ा और पुराने को ही सब कुछ समझने लगता है. अपने आसपास जितनी अधिक गहराई से देखेंगे, पाएंगे कि मन शरीर से कहीं अधिक बूढ़े होते जा रहे हैं.
हम जिनको युवा कह रहे हैं उनके मन ऐसे ही बूढ़े हो रहे हैं. मन और शरीर दोनों का बुढ़ापा अलग-अलग है. आपको देवानंद की याद होगी. देवानंद हमेशा कहते मेरा मन नया है. उनके मुंह से हमने कभी निराशा, हारने की बात नहीं सुनीं. देवानंद का मन बूढ़े शरीर के बाद भी नौजवान था. ठीक है ऐसे ही लाखों-करोड़ों नौजवानों का मन कम उम्र में बूढ़ा हो सकता है. नौजवान मन का बूढ़ा होना, जीवन की आशा का कम होते जाना खतरनाक है. संघर्ष की कमी जिजीविषा को कमजोर करती है.
जीवन के प्रति नवीन दृष्टिकोण, खतरे उठाने और जोखिम सहने की इच्छा/हर हाल में लड़ना/टूट कर बिखरना नहीं/आशा के दीए का जलते रहना/नए के स्वागत के लिए तत्पर रहना/हर विचार को होश पूर्वक देखना यही तो मन का जवान होना है. बंधे हुए रास्तों पर चलने वाले लोग मन को जल्दी बूढ़ा कर लेते हैं. बलराम कहते हैं हमें किसी से भयभीत होकर मथुरा से द्वारका जाने की जरूरत नहीं. बलराम का मन बूढ़ा हो गया है. जो चला रहा है, उससे आगे बलराम नहीं देख सकते. लेकिन कृष्ण के साथ ऐसा नहीं है. कृष्ण कहते हैं हमें प्रजा को आए दिन होने वाले आक्रमण से बचाना है. क्योंकि युद्ध के बीच शांति नहीं हो सकती. उसके बिना प्रगति नहीं हो सकती.
DayashankarMi 👌👌 बिलकुल सही..!!
DayashankarMi नवीनता शरीर और मन की आवश्यकता है और शायद मनुष्य की मृत्यु भी इसी कारण होती है।गर मन एक जगह ठहर जाएगा तो बूढ़ा हो जाएगा जैसे जल एक जगह ठहर गया तो कीचड़ हो जाएगा।चाहे नौजवान हों या वृद्ध सबों को नित नए विचार,आचार और संतुलित आहार पे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
DayashankarMi मन के हारे हार है मन के जीते जीत
DayashankarMi जिसमें जिद्द व जुनून जिंदा है, वही युवा है।
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