लेस्टर की सड़कों पर डोर-टू-डोर कैम्पेन कर रहे भारतीय मूल के कीथ वाज़ को देखकर ये कहना मुश्किल है कि ये वही जगह है, जहाँ सितंबर 2022 में हिन्दू और मुसलमानों के बीच हिंसक झड़पें हुई थीं.
धर्मेश लखानी बेलग्रेव रोड पर एक कार वॉश को दिखाते हुए बताते हैं, "इस कार वॉश को पुलिस ने घेर लिया था. घेरे के अंदर क़रीब 150 से 200 हिन्दू समुदाय के लोग थे और घेरे के बाहर मुसलमानों की एक बड़ी भीड़ थी."धर्मेश लखानी कहते हैं कि भीड़ में से कुछ लोगों ने मंदिर की दीवार फांद कर मंदिर के एक झंडे को नीचे उतारकर जलाने की कोशिश की.
1950 के दशक से, भारतीय और पाकिस्तानी चेन माइग्रेशन के ज़रिए लेस्टर आए. यानी उनके परिवार के सदस्य या गांव के लोग यहां रहते थे, इसलिए वो भी यहां आ गए. उनके लिए लेस्टर आकर्षक था - यह समृद्ध था और डनलप, इंपीरियल टाइपराइटर और बड़ी होजरी मिलों में नौकरियां थीं. वे कहते हैं, "ये एक चिंगारी थी. मुझे लगता है कि ये ऐसी घटना थी जो एक बार ही होती है. ये पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ."बेलग्रेव रोड आकर लगता है, जैसे आप हिंदुस्तान में हैं. चाहे रेस्टोरेंट हों या कपड़ों और ज़ेवरों की दुकानें... ज़्यादातर भारतीय मूल के लोग ही इन्हें चलाते हैं.यहाँ के कारोबारी आज भी उस अशांति के असर को महसूस करते हैं.वो कहते हैं, "उस अशांति के बाद ये हो गया है कि थोड़ा सा बिज़नेस पर असर पड़ा है.
कुछ लोगों का कहना है कि दोनों समुदायों में तनाव की वजह से कई बार वो एक दूसरे के बाहुल्य वाले इलाक़ों में जाने से हिचकिचाते हैं.लेस्टर में रहने वाले मोहम्मद ओवैस यूके इंडियन मुस्लिम काउंसिल में निदेशक हैं. दूसरी तरफ़ कई लोगों का ये भी कहना है कि जो हुआ उसे समझने के लिए लोगों के मंहगाई, रोज़गार और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के संघर्षों और उनसे जुड़ी निराशा को समझना होगा.
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