ऑपरेशन बारबरोसा ने दो अधिनायकवादी महाशक्तियों के बीच छह महीने तक चली भीषण जंग शुरू की. ये एक ऐसी प्रतियोगिता थी, जो दूसरे विश्व युद्ध का निर्णायक नतीजा लाने वाली थी.
हालाँकि इन्हें भी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी. धीरे-धीरे सोवियत रक्षा में सुधार और रूस की कड़ाके की ठंड के कारण दिसंबर में जर्मनी की पैदल सेना का आगे बढ़ना रुक गया. बोल्शेविज़्म को लेकर उनकी घृणा अंदर से बनी हुई थी. लेकिन ये वर्ष 1918 में यूक्रेन पर जर्मनी के क़ब्ज़े के कारण और इस धारणा से भी प्रभावित हुई कि भविष्य में बोल्शेविज़्म और पनप सकता है.एक सोच ये भी थी कि इस क्षेत्र पर नियंत्रण करने से ब्रितानी नाकेबंदी को रोका जा सकता है, जिसके कारण प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में सूखा पड़ गया था. इसलिए ये एक रणनीतिक फ़ैसला तो था ही स्वाभाविक भी था.
स्टालिन को इसकी काफ़ी उम्मीद थी कि पूँजीवाद राष्ट्र और नाज़ी आपस में ख़ून-ख़राबा करके ख़त्म हो जाएँगे. एक पुरानी धारणा ये है कि अप्रैल 1941 में ग्रीस पर हुए हमले के कारण इसे रोकना पड़ा था, लेकिन उस समय तक ये पता चल चुका था कि मुख्य कारण समय था.1940-1941 के ठंड के दौरान ख़ूब बारिश हुई और इसके कारण दो समस्याएँ खड़ी हो गईं. पहली समस्या ये हुई कि जर्मन मिलिटरी एविएशन लुफ़्टवाफ़े का फ़ॉरवर्ड एयरफ़ील्ड पानी से पूरी तरह भर गया था और जब तक ये एयरफ़ील्ड सूख नहीं जाता, यहाँ विमानों की आवाजाही नहीं हो सकती थी.
हालाँकि इस बात में कोई दम नहीं दिखता. दरअसल ये बात सोवियत संघ के 11 मई 1941 के आपात दस्तावेज़ पर आधारित है. इस दस्तावेज़ में नाज़ी हमले की योजना से वाक़िफ़ जनरल ज़ुखोव और अन्य लोगों ने संभावित जवाबी हमले पर विचार विमर्श किया था.जिन बातों पर उन्होंने विचार किया था, उनमें से एक था पहले ही हमला कर देना, लेकिन स्टालिन की रेड आर्मी उस समय ऐसा करने की स्थिति में बिल्कुल नहीं थी. इनमें से एक समस्या ये भी थी कि उनके तोपखाने जिन ट्रैक्टरों से ले जाए जाते थे, वे फसलों की कटाई के लिए इस्तेमाल हो रहे थे.
इसलिए जब स्टालिनग्राद की लड़ाई सामने आई, तो कई जर्मन सैनिकों ने ये सोचा कि सिर्फ़ इस शहर पर क़ब्ज़ा करने और वोल्गा तक पहुँचने से ही वे जंग जीत जाएँगे.विचार ये था कि सोवियत संघ के सैनिक, जो आक्रमण की शुरुआत में बड़ी लड़ाई में बच गए थे, वो अलग-थलग रहेंगे और उन्हें बमबारी करके एक जगह घेर दिया जाएगा. लेकिन राजदूत स्टैमेनोव ने जवाब दिया, "वो सनकी हैं और अगर वो पीछे हटते हुए यूराल्स की ओर चले जाएँगे, तो उनकी जीत होगी."मेरे लिए, ये एक अहम बात की ओर इशारा करता है कि ऑपरेशन बारबरोसा क्यों विफल होने जा रहा था. देश के आकार को देखते हुए ये स्पष्ट था कि जर्मन सेना और उसके सहयोगी रोमानिया और हंगरी के पास इतने सैनिक नहीं थे कि वो इतने बड़े इलाक़े वाले देश को जीत सकें और उस पर क़ब्ज़ा कर सकें.
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