विभाजन के पक्ष में सबसे बड़ा तर्क दिया गया था कि हिंदू और मुसलमान दो अलग कौमें हैं, उनके रस्मो-रिवाज़, बोलचाल, इतिहास, रहने-सहने के तरीके सब अलग हैं इसलिए यह मुमकिन नहीं है कि दोनों एक साथ रह सकें.
आज जब हम भारत और पाकिस्तान में हो रही घटनाओं और विमर्श को देखें तो विभाजन से पहले जो सवाल खड़े थे वे अभी भी बदस्तूर कायम हैं. विभाजन इनका कोई हल पेश नहीं कर सका है बल्कि इससे मामला और पेचीदा हो गया है. अलग हो जाने के बावजूद दोनों ही मुल्क एक दूसरे की अंदरूनी सियासत में एक बड़ा मुद्दा बन के छाए रहते हैं. यहां रह गए मुसलमानों के साथ करीब सात दशक गुजार देने के बाद अब भारत के बहुसंख्यक दक्षिणपंथी इस बात को साबित करने में अपना पूरा जोर लगा रहे हैं कि विभाजन का फैसला सही था.भारत और पाकिस्तान हमेशा से अलग मुल्क नहीं थे. 14 अगस्त 1947 से पहले का हमारा इतिहास और हमारी तहज़ीब एक रहे हैं.
सिंधु घाटी की सभ्यता, सम्राट अशोक, राजा पोरस,राजा दाहिर, सम्राट अकबर, महाराजा रणजीत सिंह से लेकर बाबा फरीद, बुल्ले शाह, वारिस शाह, शाह हुसैन, शहीद भगत सिंह, उधम सिंह, राय अहमद नवाज खान खरल, सर गंगा राम तक ऐसे बेशुमार नायक हैं, जो दोनों देशों के इतिहास को साझा करते हैं और दोनों तरफ की लोक स्मृतियों में रचे-बसे हैं.
लेकिन इधर पिछले कुछ वर्षों के दौरान पाकिस्तान विशेषकर पंजाब और सिंध प्रांत में अवाम की तरफ अपने गैर-मुस्लिम नायकों पर दावा जताने का चलन बढ़ा है, जो एक सकारात्मक बदलाव है.शहीद भगत सिंह दोनों मुल्कों के साझे क्रांतिकारी हैं, वे आजादी के ऐसे हीरो हैं जिनका जन्म भी पाकिस्तान में हुआ और मौत भी वहीं हुई. गैर-मुस्लिम, नास्तिक, वामपंथी विचारों के करीब होने के बावजूद अगर अवाम के साथ पाकिस्तान की सत्ता प्रतिष्ठान भी शहीद भगत सिंह को अपना नायक मानती हैं तो इसकी वजह शायद उनका पाकिस्तान की धरती से गहरा जुड़ाव और उससे भी ज्यादा आज़ादी और विभाजन से बहुत पहले ही उनकी शहादत है. उस समय तक पाकिस्तान का प्रस्ताव सामने नहीं आया था.
शायद इसी वजह से साल 2009 में शहीद हेमू कालाणी की 67वीं बरसी के मौके पर सूबा सिंध की हुकुमत द्वारा हैदराबाद स्थित सिंध म्यूजियम में शहीद हेमू कालाणी की एक तस्वीर वहां के राष्ट्रीय नायकों की कतार में रखी गई है. बाद में मूर्ति की मरम्मत की गई, तोड़ने वाले आरोपियों को जेल भेज दिया गया और किले की सुरक्षा और बढ़ा दी गई.
दरअसल मोहम्मद बिन कासिम दो कौमों के सिद्धांत के बहुत करीब बैठते हैं इसलिए पाकिस्तान के पाठ्यक्रमों में मुहम्मद बिन कासिम को नायक और राज दाहिर को खलनायक के तौर पर पेश किया जाता है लेकिन इसके बावजूद भी पाकिस्तान राजा दाहिर से पूरी तरह से पीछा नहीं छुड़ा सका है.
jeena203 बहोत कुछ हासिल हुआ। 70 साला की आजादी के बाद देश ने बहोत कुछ बनाया, जोड़ा, कमाया। फिर आया एक झोला छाप फकीर। 6 साल मे ही 70 साल की कमाई का आधा बेच चुका है। 🤣
Pakistan muslim ko mil gaya,Bangladesh bhi aur india ko bhi bichbich me jala hi rahe ho.m uslim ke nam par roj danga karate hi ho,sahi bola Hindustan ko kya mila
हिंदू राष्ट्र
कुछ आतंकवादी अभी भी हिंदुस्तान में है... जो सोचते है की ये फ़र्ज़ीगांधी ख़ानदान और टर्की नेहरू का हिंदुस्तान है.....🤣🤣🤣 मुग़ालते के चक्कर में हिंदुस्तान किसी के बाप का बोलने वाले चीचा निकल लिये🤣🐶🤣
इंसानियत का कत्ल नेहरू ख़ानदान को सत्ता
आजादी से पहले जो कुछ लोग हिंदुस्तान के लिए सोच रहे थे उसे आसानी हुई व्यक्तियों के ऊपर अपना शोषण करना
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