हरित क्रांति की अगुवाई करने वाले पंजाब में खेती पर क्यों आया संकट?

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पंजाब में कृषि विकास में गिरावट, रफ्तार थमी (DipuJourno)

आकार में भारत के सबसे छोटे राज्यों में से एक होने के बावजूद पंजाब हाल तक देश के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक था. 1970 से 1990 के दशक के दौरान कृषि से राज्य का सकल घरेलू उत्पाद ऊंची दर से बढ़ा. इस अवधि में पंजाब की कृषि विकास दर करीब 5 फीसदी थी, जो किसी भी दूसरे राज्य की तुलना में ज्यादा थी और पूरे भारत के कृषि विकास की तुलना में दोगुनी थी.बाद में 1990-2000 के दशक में पंजाब की कृषि विकास दर घटकर करीब तीन फीसदी पर आ गई और 2010-2020 के दौरान घटकर दो फीसदी से भी कम हो गई.

अनाज उत्पादन बढ़ाने के सिर्फ दो विकल्प थे- या तो छोटे किसानों के बीच जमीन का वितरण हो या पारंपरिक खेती में टेक्नोलॉजी का विकल्प चुना जाए. भारत के नीति निर्माताओं ने खाद्यान्न संकट से निपटने के लिए दूसरा विकल्प चुना. इंटेंसिव एग्रीकल्चरल डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम के तहत किसानों को ज्यादा उपज वाले बीज, सिंचाई, उर्वरक, कीटनाशक मुहैया कराए गए. इसके साथ-साथ किसानों को आश्वासन दिया गया कि उनके पास उपयोग से ज्यादा जो भी उपज होगी, सरकार निश्चित मूल्य पर खरीद लेगी.

हरित क्रांति के पहले दशक में उपयुक्त जलवायु और मिट्टी के कारण तकनीकी सपोर्ट का सबसे ज्यादा लाभ गेहूं को मिला. लेकिन दूसरे दशक तक सरकारी खरीद के आश्वासन के साथ धान भी एक लोकप्रिय फसल बन गई. भारत सरकार ने 1965 में कृषि मूल्य आयोग के जरिये से अनाज के मूल्य निर्धारण के लिए एक तंत्र की स्थापना की, जिसने गेहूं और चावल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का आश्वासन दिया.

 

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