क्या आपने सोचा है, ऐसा क्यों कहा जाता है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। परमपिता परमात्मा इस विराट दुनिया का मालिक है, परन्तु ईश्वर ने मनुष्य की आत्मा को अपनी सत्ता क्षेत्र में स्वयं निर्णय लेकर कार्य करने का पूर्ण अधिकार दिया है। मनुष्य अपनी सुबुद्धि एवं सत्य प्रवृत्तियों के ज़रिए कर्म कर अपने भाग्य का निर्माण कर सकता है या फिर अपनी दुर्बुद्धि एवं आदतों के कारण उसे बिगाड़ भी सकता है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि यदि घर के दरवाजे एवं खिड़कियां बंद कर ली जाएं तो सूर्य का प्रकाश अपने...
हुए भी कुछ लोग बिल्कुल भी तरक्की नहीं कर पाते हैं, बल्कि पतन की ओर बढ़ने लगते हैं।अध्यात्म क्षेत्र में यह देखा गया है कि व्यक्ति अपनी श्रद्धा के बल पर पत्थर एवं धातुओं से बनी प्रतिमाओं से चमत्कारी लाभ, आशीर्वाद की प्राप्ति करता है, दूसरी ओर स्वयं की अनास्था एवं शंका के कारण व्यक्ति अपने गुरूजन अथवा अपने से श्रेष्ठ व्यक्तियों के अतिसमीप रहने पर भी कोई लाभ नहीं ले पाता। महाभारत के दृष्टान्त बताते हैं कि एकलव्य ने मिट्टी से बनी द्रोणाचार्य की मूर्ति से शिक्षा, कला, कौशल का ज्ञान प्राप्त कर लिया जो...
ईश्वर और मनुष्य का संबंध Spiritual Path Religious Significance Faith And Belief Ramakrishna Paramahamsa And Maa Kali Lord Krishna And Mirabai Secret Of Mahabharata Miraculous Power Of Devotion Relationship Between God And Man
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